Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पीयूषपिणी टोका ३९ अम्नड परिवाजकषिपये भगवद्गीतमयी सवाद ५९५
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समणोवासगपरियायं पाउणहिति, पाउणित्ता मासियाए सलेहणाए अप्पाणं झुसित्ता, सहि भत्ताइ अणसणाए छेदित्ता, वास = नियमविशेष पोषयोपवास, स चतुर्निथ आहारगग सकारत्यागतन्यचर्य सावद्यन्यापाग्परित्यागभेदात् । एपा गालादिपपपपवासान्तानामितरेतरयोगद्वन्द्वरनैस्तथोक्तै 'अप्पाण भाषेमाणे इ वासा समजोनासयपरियाय पाउणिहिति' आमान भानयन् बहूनि वर्षाणि श्रमगोपासकपर्याय पालयिष्यति, 'पाणित्ता ' पालयिचा 'मासियाए सहणाए अप्पाण सित्ता' मासिक्या म्लेखनयाssमान जुपिया = सेनिचा, 'सट्ठि भाइ असणाए छेदित्ता' पष्टि भक्तानि अनशनेन ठित्वा, ' आलोइयपडिकते ' त्याग करना । इन सबका भेद इस प्रकार है, शीलात का भेद - सामायिक, देशावकामिक, पौषध और अतिथिनविभाग इस प्रकार से ४ हैं । गुणत्रत तीन है । पौषपोपनास भी ४ प्रकार का है - आहार का व्याग, शारीरिक सत्कार का त्याग, ब्रह्मचर्य का पालन एव सावध व्यापार नहीं करना । इन सन नियमों-बतों से ( अप्पाण भावेमाणे ) अपनी आत्मा को भावित करता हुआ (हुइ वासा समणोवासगपरियाय पाउणहिति ) अनेक वर्षों तक श्रमणोपासक - श्रावक की पर्याय का पालन करेगा । ( पाउणित्ता मासियाए सलेहणाए अप्पाण झसित्ता ) इस प्रकार श्रावक की पर्याय को पालन करके फिर वह १ मास की मलेखना से अपनी आमा को युक्त कर - अर्थात् एक मास की मलेखना धारण कर (सर्द्वि भत्ता अणसणाए छेदित्ता ) साठ भक्त का अनगन से छेदकर (आलोयपडिकते) पापकर्मों की आलोचना-प्रतिक्रमण करके ( समाहिपत्ते) समाधि
એ પેાષધ છે તેમા ઉપવામ એટલે વસવું એ પાષધેાપવાસ કહેવાય છે એ બધાના ભેદ या प्रारे छे, शीघतना लेह-भाभायिक, देशावशिष्ट, પાષધ, અને અતિથિસ વિભાગ, આ ચાર પ્રકારના છે. ગુણુવ્રત ત્રણ પ્રકારના છે પાષધેાપવાસ ચાર ૪ પ્રકારના હે–આહારને ત્યાગ, શારીરિ૰ સત્કારને ત્યાગ, બ્રહ્મચર્યનું પાલન તેમજ સાવદ્ય વ્યાપાર ન ફરવા આ બધા नियमो व्रतोथी ( अप्पाण भावेमाणे ) पोताना आत्माने लावित डरता था (बहूइ वासाइ समणोनासगपरियाय पाउणहिति ) अनेड कम्मो सुधी श्रमशो પાસક-શ્રાવકની પર્યાયનુ પાલન કરશે ( पाउणित्ता मासियाए सरेहणाव अपाण सित्ता ) या अजरे श्रावनी पर्यायनु पासन जीने यठी ते खेड भागनी भबेखना धारण नरीने (सट्ठि भत्ताइ अणसणाए छेदित्ता ) साई लानु अनशनथी छेदन नीने (आलोइयपडिकते) पाथ भनी