Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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'औषपातिकको - मूलम्से जे इमे गामागर जाव सण्णिवेसेसुपच्वइया समणा भवति, त जहा-अतुक्कासिया परपरिवाइया भूइकम्भिया भुजो भजो कोउयकारगा, तेणं एयारवेण विहारेणं विहर
टीका-'से जे इमे' इत्यादि । ' से जे ईमे गामागर जाव सण्णिवेसेसे पव्वइया समणा भपति' अथ य इमे प्रामाऽऽकर यारसनिवशेषु प्रत्रजिता श्रमणा भवति । तद्भदान दर्शयितुमाह-'त जहा' तथा 'अत्तासिया' आत्मो कषिका - आत्मन उकर्प =श्रेष्टव सोऽस्त्येषामित्यात्मो फर्पिका आत्मगौरवदर्शका , 'परपरिवाइया' परपरिवादिका -परेपा परिवादो-निदाऽस्ति येषा ते परपरिवादिका -परनिन्दका इयथ, 'भूईकम्मिया' भूतिकमिका -भूतिकर्म-चरिताना वाधाप्रशमनार्य भस्मदानं तदस्ति येषा, ते 'भूतिकर्मिका , 'भुजो मुज्जो कोउयकारगा' भूयोभूय कौतुककारका -भूयोभूय : पुन पुन कौतुक-परेपा सौभाग्यादिनिमित्त स्नपनादि तत्कार , यद्वा-कुतूहलकारका । 'ते ण एयारुवेण रिहारेण विहरमाणा' ते सल्वेतद्रूपेण विहारेण विहरत 'बहुइ
'से जे इमे गामागर' इत्यादि।
(से जे इमे) जो ये (गामागर-जार सनिवेसेसु) ग्राम आकर आदि से लेकर सनिवश तक के स्थानों में प्रवजित सयमी श्रमण हैं, जैसे-(अत्तकासिया) अपना आत्मा के गौरव को दिसाने वाले, (परपरिवाइया) स्वमत को अच्छा समझकर दूसरों को निंदा करने वाले, (भूकम्मिया) भूतिकर्म करने वाले-ज्वरित व्यक्तियों को बाधा को शमन करने के लिये भस्म को देने वाले, (भुज्जो २ कोउयकारगा) पुन पुन अनेक प्रकार के कौतुक करने वाले, (ते ण एयारूवेण विहारेण विहरमाणा) वे सब इस प्रकार के आचार म रहते हुए (पहुई वासाइ सामग्णपरियाग पाउणति) बहुत वर्षों तक श्राम
'से जे इमे गामागर' त्या
(से में इमे) माया (गामा-पार-जाव-सनिवेसेस) 20४२' આદિથી લઈને સ નિવેશ સુધીના સ્થાનમાં પ્રવૃતિ સયમી શ્રમણ છે, જેવી
(अत्तुशासिया) पोताना मात्भाना गौरव भावापा, (परपरिवाइया) पोताना भतन सा२। समलने मीनी निवा , (भइकम्मिया)' भूतिકર્મ કરવાવાળા-જવરથી પીડાતા માણસના દુખ શમન કરવા માટે ભરમે मापवावा (भजो भुजो कोउयकारगा) पा२२ भने अरना जीतु ४२वा पाप, ते ण एयारवेण विहारेण विहरमाणा) तशा mut Balat मारना