Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पीयूषवर्षिणी-टीका सू ४६ अम्ब हपरियाजकविषये भगवद्गीतमयो संपाद ६०५ गयं ७, पुक्खरगय ८, समताल ९, जूय १० जणवायं ११, पासगं १२, अट्ठावय १३, पोरेकव्व १४ दगमट्टिय १५, अण्णविहिं १३, पाणविहिं १७, आभरणविहि १८, सयणविहि १९, अज्ज २०, स्वराणा परिझानम ७, 'पोक्चरगय' पुष्करगत मङ्गविषयकं निजानम , पाद्यान्तर्गतत्वेऽपि मृगाद पृथककथन परममगीतात्विोपनार्थम् ८, 'समताल' समताल-गानातिमानकालस्ताल म सम =न्यूनाधिकमानारहितो जायते यस्मात तत् समतालविज्ञानम् ९, 'जूयं' धूत-'जुगार' इति भापायाम 10, 'जणवाय' जनवारजनेषु वा प्रतिवाद करणरूपम् ११, 'पासय' पागक=धूतोपरणविशेष, 'पागा' इति भापायाम् १२, 'अट्ठावय' अष्टापर-छूत विशेषरवेलनम १३, 'पोरेफर' पुर काव्य-पुरत पुग्त काव्य-काव्यम्पपाणानि सारण =गाप्रकरित्यमित्यर्थ १४, 'दगमट्टिय' टकमत्तिकाम् उन्कयुक्तमृत्तिकाप्रयोगविषि ढक. मत्तिका उम्भकारविपेत्यर्थ, ताम् १५, 'अन्नविहि अन्नविधिम् अन्ननिष्पादनविज्ञानम् । 'अन्नविहि' इत्यत्र समायाङ्गोक्तस्य 'मधुमिथ' इत्यस्य समावेश १६, पाणविहि' पानविषयविज्ञानम् १७, 'आमरणविहि' आभग्णविधिम् भूपगनिमाणधारणविज्ञानम् । स्वरा का-गात के मूलभूत पड्ज-पभ आदि स्वर्ग का, (८ पुक्खरगय) मृग नजाने की (९ समताल) समताल की-तान के अनुसार ताठ बनाने का, (१० जयं) जुआ मलन की, (११ जणवाय) का के साथ प्रतिवाद करने का, (१२ पासग) पासा फेंकने की, (१३ अद्रावय) अष्टापट-चौपड खेलने का, (१४ पोरेफव्व) आशुकवि होन का, (१५ दगमदिय) मि । से अनक प्रकार के वर्तन बनान की, (१६ अण्णविहि) धान्य आदि को यो कर अनाटिक उत्पन करन का-भोजन बनाने का, समायाग में उक्त 'मधुसित्यमासिक्थ का सामे समावेश किया गया है, (१७ पाणविहिं) पयपदार्थ की विधि जानन ५०-५म माहि स्परोनी, ८ (पुस्परगय) मृदय मावानी, ८ (ममताल) समतासनी-तानने अनुसार तास मन्तवानी, १० (जूय) ॥२ २भवानी, ११ (जणवाय) बानी साथे प्रतिवाद ७२पानी, १२ (पासग) पास। पानी, १३ (अट्ठावय) माप-यापाट २भवानी, १४ (पोरेकल्य) मानवियवानी, १५ (दगमट्टिय) मारीमाथी मने हारना हम मनापानी, १६ (अण्ण विहिं) धान्य माहिने पावाने अन्न माहिने उत्पन्न ४२वानी-मान मनापपानी, सभवायासमा त 'मधुसित्थ' मधु(सथना समावेश मही ४ ४२पामा माथ्य। छ, १७ (पाणनिहिं) पीवान पहानी विधि नपानी, १८