Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ओपपातिकमा वखेड ६६, णालियाखेड ६७, पत्तच्छेन ६८,कडच्छेज ४९,सजीवं ७०, निज्जीव ७१, सउणरुय ७२-मिति वायत्तरिकलाओ सेहावित्ता सिम्खावेत्ता अम्मापिईणं उवणेहिति ॥ सू०४६॥ 'नालियाखेड' नालिकावेलम्-यतविशपम्-मामृद्धिप्रदायाद विपरीतपा-कनिपतन मिति नालिकाया यर पायक पात्यते । यद्यपि यते एवास्य समावेशो भवितुमर्हति तथापि नालिकाखेलप्राधान्यज्ञापनार्थ भेदन ग्रहणम् ६७, पत्तन पत्रच्छेद्यम् अष्टोत्तरशतपत्राणा मध्ये विवक्षितमख्याकपन छेटने हस्तलाघवम् ६०, 'कडच्छेन' कडच्छेद्यम्-कट (चटाई वत् क्रमाच्छेय वस्तु यत्र विज्ञाने तत्तथा तत् ६९, 'सजीव' सजाय सजीवकरण-मृतधात्वा दीना सहजस्वरूपापादनम् ७०, 'निजीव' निर्जीव-निर्जीयकरणम्-हेमादिधातुमारण पारद मारण वा ७१, 'सउणण्य शकुनरुतम् , मन शकुनपद रुतपद चोपलक्षणम् , तन सय शकुनमग्रह , गतिचेष्टादिगरलोकनादिपरिग्रहश्च ७२, 'इति पारतरिकलाओ' इति द्वासन तिकला-द्वासप्ततिपुरुयफला 'सेहारित्ता सिम्खावेत्ता' सेधयित्वा शिक्षयित्वा च 'अम्मा पिर्दण उवणेहिति' मातापित्रोरुपनेष्यति समर्पयिष्यति ॥ स ४६ ॥ हुआ है । (६७ नालियाखेड) धूतविशेष खेलने की-नालिका म पाशे डालकर जुआ खेलने की, (६८ पत्तच्छेज) पत्र छेदन करने की, १०८ पत्रों मे से विवक्षित पत्र का छेदन करने मे हाथ की कुशलता की, (६९ कडच्छेज्ज) कट की अथात् चटाई की तरह क्रम २ से छेदन करने की, (७० सज्जीव) मारी हुई धातुओं को पुन प्रकृतिस्थ करने का, (७१ निज्जीव) निर्जीव करने की हेमादिक धातुओं को मारने की, अथवा पारे को मारन की, (७२ सऊणरुय) पक्षियों के शन्द पहिचानने की उनका गति, चेष्टा एव अवलोकन आदि जानने का क्ला, (इति पावत्तरिकलाओ सेहावित्ता सिक्रवावेत्ता अम्मापिदण तभा 'समनायाग'मा ४९ भलिपाइ मन धातुपाना भभावश मडी ४२३॥
४ ६५ (सुत्तखेड) सूत्र-राथी २भवानी,६ (पट्टखेट) पत-२४१ ५२ २१पानी, मी मभवायागमा 3A (चम्मसेड) 'यामाथी गेस' मना ५९ सभा वेश ४य छ १७ (नालियासेड) धत विशेष २भवानी-नालियामा पासा नाभीन जुगार २भवानी, १८ (पत्तच्छेज्ज) पत्र पानी, १०८ पत्रमाथी विवक्षित पत्र अपवाभा डायनी शतानी, ६८ (कडाछेज्ज) ४८नी-मर्थात याचना 48 भभथी छेदन ४२वानी,७० (सज्जीव) भारती धातुभानेशन प्रतिस्थ ४२पानी, ७१ (निजीव) नि५ ४२पानी-उभ माहित धातुमाने भारपानी, अथवा पाराने भारवानी ७२ (सउणरुय) पक्षियाना शह सभवानी तमनी गति, यष्टातभर मान माहितपानी ४॥ (इति वावत्तरिकलाओ सेहावित्ता सिक्खावित्ता