Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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औपपातिकतरे
माया-लोहा मिउ-मदव-सपण्णां अल्लीणा विणीया अम्मापिउ-सुस्सूसगा अम्मापिईणं अणडकमणिजवयणा अप्पिच्छा अप्पारंभा अप्पपरिग्गहा अप्पेण आरंभेण अप्पेण समारभेणं थमहकारजयशाला इत्यर्थ , 'अल्लीणा' आलाना =गुरुमाश्रिय वर्तनगौला , 'विणीया' विनीता =विनयवन्त , 'अम्मा-पिउ-मुरमूसगा' अम्बा-पितृ-शुश्रूपका =मातापित्रो सेवका , 'अम्मापिर्दण अणदक्मणिजायणा' अग्यापिनोरनतिक्रमणायवचना =मातापित्री नीतिवचनपरायणा , 'अप्पिच्छा' अपेच्छा =अन्पामिलापरत , 'अप्पारमा' अन्पारम्भा - अन्प =स्वप , आरम्भ =पृथिव्याधुपमर्दनरूपो येया तऽल्पारम्भा, 'अप्पपरिग्गहा' अन्प पारग्रहा --अप परिग्रहो=धनधान्यादिरूपो येपा ते तथा, एतदेव वाक्यान्तरेणाऽऽह-'अप्पेण आरभेण अप्पेण समारंभेग' अन्पनारम्भेग अन्पेन समारम्भेग-इहाऽरम्भ -प्रागिनामुपधात , (मिउ-मद्दव-सपण्णा) मृदुमार्दव से जिनकी आत्मा अत्यत वासित होती है, अहकार का सर्वथा जिनमे अभाव रहा करता है, (अल्लीणा) गुर की आज्ञानुसार जो अपनी प्रकृति को सुचारु बनाये रहा करते है, (विणीया) जो प्रकृति से ही अत्यत विनीत होते है, (अम्मा-पिउ-सुस्सूसगा) मातापिता के जो सेवा करते हैं, (अम्मा-पिईण अगइक्मणिज्जययणा) मातापिता के वचनों के अनुसार जो चलते है, (अप्पिच्छा) जिनकी इच्छाएँ-आवश्यकताएँ बहुत थोडी होती है, (अप्पारंभा) आरभ जिनका अल्प होता है, (अप्पपरिग्गहा) धनधायादिरूप परिग्रह जिनका अल्प होता है, (अप्पेण आरभेण अप्पेण समारभेण अप्पेण आरभसमारभेण वित्ति कप्पेमाणा) एव जो अल्प आरभ से, अल्प समारम्भ से और अल्प आरभ-समारभ से आजीविका चलाया करते तमा बाल से या२ उपायो नम २।। २ छ (मिउ-मद्दव-सपण्णा) भृक्ष માર્દવથી જેમને આત્મા અત્યત વાસિત (પ્રફુલ) હોય છે, અહ કોરની
भनामा सपथा मिलाप २॥ उरे छ (अल्लीणा) गुरुनी माज्ञा-मनुसार २ पोतानी प्रकृतिने सुह२ मनाच्या उरे छे, (विणीया) २ प्रकृतिथी ४ मत्यत दिनात डाय छ, (अम्मा-पिउ-सुस्सूसगा) माता-पितानी सेवा रे छ, (अम्मापिईण अणइक्कमणिज्नवयणा) भातपिताना क्या सनुसार २ या
( छ), (अप्पिच्छा) रेनी छाया-मावश्यतामह १ थोडी डाय छ, (अप्पारभा) माना ८५ हाय छ, (अप्पेण आरभेग अप्पेण समार शेण अप्पेण आरभसमारभेण वित्तिं कप्पेमाणा) तेभा २ स८५ मा२ मथी,