Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पीयूषयषिणी-टीका सू १० प्रकृतिभद्रकादीनामुपपातषिपये गौतमप्रश्न ५२३ अप्पेणं आरभसमारभेण वित्ति कप्पेमाणा बहुइ वासाड आउय पालेति, पालित्ता कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु वाणमतरेसु, तचेव सव्व, णवरं ठिई चउद्दसवाससहस्साड ॥ सू० १० ॥ समारम्भस्तु तेपा परितापकग्णम् 'अप्पेण आरंभसमारभण' अपन आरम्भसमारम्भेणआरम्भध समारम्भश्चेति-आरम्भसमारम्भ तेन, अल्पेनारम्भेण अल्पेन समारम्भेण चेत्यर्थ, "वित्ति कप्पेमाणा' वृत्ति कल्पय त =जापिका कुवाणा , 'वहइ वासाई आउय पालेति' बहनि वर्षाणि आयूपि जानितानि पालयति, 'पालित्ता' पालयित्वा, 'कालमासे काल विचा' फाल्मासे काल कृया 'अण्णयरेस वाणमतरेसु' अयतरेषु व्य तरेषु, अतोऽग्रे 'त चेव सव्वं तदेव-पूर्ववदेव सर्व वर्णन ज्ञेयम् । 'णवर' नवरं विशेषस्तु--'ठिई चउदस-वास-सहस्साह' स्थितिश्चतुर्दशवर्षसहस्राणि-चतुर्दशपर्पसहस्राणि यावत् स्थिति प्रनमा ॥ सू० १०॥
हैं, एसे जीव (यह वासाइ आउय पालेंति) बहुत वर्षातक नीवित रहा करते है, (पालित्ता कालमासे काल फिच्चा अण्णयरेसु वाणमतरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवति) पश्चात् काल अवसर काल करके किसी एक व्यन्तरों के देवलोक में देवतारूप से उत्पन्न होते हैं। (त चेव सव्व) यहा पूर्ववर्णित प्रकार के अनुसार स्थिति आदि सब कुछ समझ लेना चाहिये। (णवर) विशेषता सिर्फ इतनी ही है कि वहा पर उनकी स्थिति १२ हजार वर्ष की प्रतिपादित की गई है, और यहा पर उनकी (ठिई चउद्दसवाससहस्साइ) १४ हजार वर्ष की स्थिति जाननी चाहिये ॥ सू० १०॥
અ૮૫ સમાર ભથી અને અલ્પ આર ભ–સમાર ભથી પિતાની આજીવિકા ચલાવ્યા रे छे सपा ९०५ (वहह वासाइ आउय पालेंति) धया परसो सुधा पता २॥ उरे के (पालित्ता कालमासे काल किच्चा अण्णयरेसु वाणमतरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भपति) ५७ अक्सरे स उशन 5 मेड व्यतराना पसभा क्ता३चे उत्पन्न थाय ले (त चे सव्व) मही અગાઉ વર્ણન કરેલા પ્રકાર અનુસાર સ્થિતિ આદિ બધુ સમજી લેવું नये (णपर) विशेषता भात्र सटवी छे , त्या तभनी स्थिति १२ मार १२ १२सनी प्रतिपाहित ४२सी छ, भने सही तभनी (चउदस-याससहस्माइ) १४ यो २ १२सनी स्थिति सभापी नये, (सू० १०)