Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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खुहा माणं पिवासा माणवाला माण चोरा माण मसगा माण वाइयपित्तिर्यासभियसंनिवाइय विविहा रोगायंका परिसहोवसग्गा फुसतु-त्तिकद्दु एयपिणं चरमेहिं ऊसासणीसासेहि वोसिशब्दा निषेधार्थ, 'ण' शब्द वाक्यालद्वारा श्रेय कर्तृ शरारक स्पर्शन न करोतु, एवमेवोगक्षुधा - पिपासा - व्याल-चौर दा-मशक वातिक पैत्तिक श्लैष्मिक सान्निपातिकादयो विविधा रोगा तवा परीपहा उपसर्गाचैतच्छगरार न स्पृशतु । अन ज्याला = सर्पा, रोगा=महाव्याधय, आतवा =सयोघातिनो रोगा एव, परीपहा क्षुधादयो द्वाविंशति, उपसर्गा = दिव्यादय, अयत् सुगमम् । 'त्तिकट्टु ' इति कृत्वा 'एय पिण चरमेहिं ऊसासणीसासेहिं वोसिरामि त्तिकट्टु' एतदपि खलु चरमैरुच्छ्वासनि श्वासैर्न्य सृजामि - एतदपि शरीर त्यजामि इति कृवा= इत्थ विचार्य ' सलेहणासणाइसिया मलेसना - जूपणा - जुष्टासलेखनाया = कषाय होता है उसी प्रकार से प्रिय होने कारण भाण्डकण्डक के तुल्य (इम) इस मेरे ( सरीर) शरी रको गीत स्पर्श न करे, उष्ण स्पर्श न करे, क्षुधा स्पर्श न करे, पिपासा स्पर्श न करे, व्याल- सर्प स्पर्श न करे, चोर उपद्रव न करे, दस डास स्पर्श न करे, मशक-मच्छर स्पर्श न करे, वातसबधी, पित्तसबधी, कफमबधी, सन्निपातसबधी आदि विविध रोग - महाव्याधिया, आतक -- स प्राणहर रोग, परापह-क्षुधाआदि एव उपसर्ग - देवादिक कृत उपद्रव, कोई भी इस शरीर को स्पर्श न करें, (तक) इस प्रकार की विचारधारा को (चरमेहिं ऊसासणीसासेहिं बोसि रामि) अब चरम उच्वासनि श्वास तक छोड़ते है । (तिकट्टु ) इस तरह करके (सलेहणाझूसणाझूसिया ) लेखना मे - कषाय एव शरीर के कृश करने में प्राति से युक्त
वे अलाउडर उड़ना तुटय (इम) मा भारा ( सरीर) शरीरने डी स्पर्श न ४रे, गरमी स्पशन उरे, लू स्पर्श न उरे, तरस स्पर्श न उरे, व्यास - अर्थ स्पर्श न दरे, थोर उपद्रव न उरे, हश-डास स्पर्श न बरे, भश४भन्छ२ स्पर्श न १२, वातम धी, पित्तस अधी, अममधी, सन्निपातસમધી આદિ વિવિધ રાગ-મહાવ્યાધિઓ, આત ~તીવ્રપ્રાણહર રોગ, પરી વહુ-સુધાદિ તેમજ ઉપસર્ગ–દેવાકૃિત ઉપદ્રવ, એવુ કાઈ પણુ આ शरीरने स्पर्श न उरे (त्ति कट्टु ) मा प्रहारनी विचारधाराने ( चरमेहिं सासणीसासेहिं वोसिरामि) हवे यरभ उछ्वासनि श्वास सुधी छोड छु (त्तिकहु ) याची शेते नरीने (सलेहणाझूसणानूसिया ) स बेमनामा - उपाय तेभन शरीरने शृश ४२वाभा प्रीतिथी युक्त, ते मधा (भत्तपाणपडियाइक्सिया) लक्ष्त तेभन्न