Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पोयूपी टीका सू १२
द्वितीयादिमनुष्योपपातविषये गौतमप्रश्न ५३१
फाणिय महु मज्ज मस णो अण्णत्थ एक्काए सरिसवविगईए, ते मया अपिच्छा, त चेत्र सव्व, णवर चउगसीड वाससहस्साइ ठिई पण्णत्ता ॥ सू० १२ ॥
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तामानामयि प्रत्ते- 'त जहां' तथा 'वीर द िणत्रणीय सप्पि तेल फाणिय महू मज्ञ मास 'निवनीत सर्पितै पाति मधु मध मामम-तन ना= 'मन' इति प्रसिद्ध, फाणित = गुड, अयानि प्रमिहानि, आहर्तुं न कल्पते error | 'णी अण्णत्य पाए सरिसारिए' नो अन्यनेकम्या मार्पपनिकृतेमार्पपतैरूपामेका नितिं वर्तयिता अया उक्ता विकृनयो न पम्यतुमिति प । 'तेण मणुया अपिच्छा ते यल मनुजा अल्पे, 'सेम त चेव' शेष तदेव = अवशिष्ट सर्वं पूर्वनदेन नोव्यम् | 'णवर' नगर=विशेषन्तु 'चउरासी वासमहम्सा ठि पण्णत्ता' चतुरशीतिं महस्राणि स्थिति प्रज्ञप्ता-व्यतरेषु देवेनोपन्नाना तेपा तनावस्थान चतुरगानि सहस्राणि यान ॥ मृ० १२ ॥
गय) याने योग्य नहीं हैं । वतिया है- (सीर णित्रणीय सप्पि तेल फाणिय महु मन मास) तीर, नवनीत, सर्पि, तेल, फाणित, मधु, मद्य, एव माम । गुड का नाम फाणित है | नवनति नाम मक्मन का है । (णो जगत्य एका सरिसवनिगईए) एक सरसों के तैलरूप निति का परिहार नहा जताया गया है । ननरमरूप निरृति का परिहार करन वाले व्यक्ति सरसों का तेल मा सकते है । (ते ण मण्या अपिच्छा, त चेत्र मत्र, वर चरामीह वाससमा ठिई पण्णत्ता) ये मनुष्य अल्पइत्यपाठ होते है । अपशिष्ट समस्त पूर्व की तरह यहा जान उना चाहिये । विशेषता
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नथी ते विकृतियो मा - ( खीर हि गनणीय सर्पि तेल्ल फाणिय मह भज्न माम) क्षीर (दूध), हाड़ी, नवनीत, भर्चि - (धत), तेस, गणित, मधु, भध, तेभन માસ ગેાળનુ નામ કાણિત કે નવનીત એટલે साधु ( णो अण्णत्य एका मग्मिनिईए) भेट भरभूवना तेसउथ विनતિના પરિહાર નથી ખતાવ્યો નવસ્રુપ વિકૃતિને પશ્તિાર કરવાવાળા માણમ भरमवतु तेस भाई डे हे ( ते पण मणुया अपिच्छा, तचेन सव्य, णार मम्म ठिई पण्णत्ता ) मा भनुष्यो छावाजा होय કે બાકીનુ બધુ પર્વ તા પ્રમાણે ાણી લેવુ નેઇએ વિગેષમા વિશેષતા