Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पोयूपपिणो-टोका स १९ अम्बडपरिव्राजका गारवर्णनम चेव णं अपरिपए, से वि य णं दिपणे णा चेव ण अदिपणे, से वि य पिवित्तए, णो चेव ण हत्थ-पाय-चरु-चमस-पक्खालणटाए सिणाइत्तए वा। तेसिं गं परिवायगाणं कप्पड मागहए स्वच्छ कल्पते, नो चैव सलु अवलुप्रसन्नम् , ' से रिय परिपृ णो चेाण अपरिपए' नदपि च जल परिपूत-प्रोण गालत कन्पते, नो चत्र ग्वन्यपरिपृतम् , 'से रि य ण दिण्णे णो चेत्रण अदिण्णे' तपि च पल दत्त कपत, न चैत्र बच्चदत्तम्, ‘से वि यपिरित्तए णो चेवण हत्थ-पाय-चरु-चमस-पाखालणद्वाए सिणाहत्तए वा तदपि च पातु कन्पत नोचर बल हस्तपादचरचमसप्रक्षालगार्थम, तत्र हस्ती पाठीच प्रसिद्धौ। चर = अन्नपात्र, यस्मिन् भिक्षान स्थाप्यते । चमसो-दर्विका-परिवेपणपात्र 'चमचा' इति प्रसिद्धम् , है, अतिनिर्मल नहीं होन पर ग्राह्य नहीं हो सकता । (से वि य परिपए णो चेवण अपरिपूए) अतिनिर्मल होने पर भी वस्त्र से छाना जाने पर ही कल्पित कहा गया है, अनउना पानी अपने उपयोग म लाने का निषेध है । (से नि य ण दिण्णे णो चेव ण अदिण्णे) उना हुआ होने पर भा क्सिी दाता के द्वारा दिया गया ही ग्रहण करने के योग्य रहा है, पिना दिया हुआ नहीं। (से वि य पिरित्तए णो चेव हत्य-पाय-चरचमस-पकवालणडाए) दिया गया भी जल का उपयोग केवल पाने के लिये ही करने की आना हे, हाथ-पैर, चरु-भाजन पान पर चमचा धोने के लिये उसका उपयोग निहित नहीं है, अथात हाथ पैर आदि धोने के काम म उसको नहीं ला सकते, (सिणादत्तए वा) अनहप्पसण्णे) २७ सपा पY मतिनिभा डाय तो? पाहा २४
छ, यतिनिर्भण न डाय तो पाहा य शतु नथी (से वि य परिपूए णो चेर ण अपरिपूए) भतिनिर्भ हवा छत पशु पत्रथा जादु હોય તે જ કલ્પિત કહેલું છે વગર = ળાયેલું પાણી પિતાના ઉપગમા देषानु निषिद्ध छ (से वि य ण दिण्णे णो चेत्र ण अदिण्णे) भागेदु डाय છતા પણ કઈ દાતા દ્વારા અપાએલુ જ ગ્રહણ કરવા ગ્ય કહેવામાં આવ્યુ छे, 4 सीधेलु नहि (से वि य पिपित्तए णो चेर हत्य-पाय-चन-चमस-पम्सालणट्टाए) मा डाय तपासना उपयोग
प चावा माटे ४ ४२વાની આજ્ઞા છે, હાથ-પગ, ચરૂ-ભેજન પાત્ર, તેમજ ચમચા દેવા માટે તેને ઉપયોગ કરો વિહિત નથી, અથાત્ હાથ પગ આદિ ધેવાના કામમાં तेना उपयोगी साय नल (मिणाइत्तए वा) तेभन तेन Cपयोग स्नान