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________________ ८८५ - पोयूपपिणो-टोका स १९ अम्बडपरिव्राजका गारवर्णनम चेव णं अपरिपए, से वि य णं दिपणे णा चेव ण अदिपणे, से वि य पिवित्तए, णो चेव ण हत्थ-पाय-चरु-चमस-पक्खालणटाए सिणाइत्तए वा। तेसिं गं परिवायगाणं कप्पड मागहए स्वच्छ कल्पते, नो चैव सलु अवलुप्रसन्नम् , ' से रिय परिपृ णो चेाण अपरिपए' नदपि च जल परिपूत-प्रोण गालत कन्पते, नो चत्र ग्वन्यपरिपृतम् , 'से रि य ण दिण्णे णो चेत्रण अदिण्णे' तपि च पल दत्त कपत, न चैत्र बच्चदत्तम्, ‘से वि यपिरित्तए णो चेवण हत्थ-पाय-चरु-चमस-पाखालणद्वाए सिणाहत्तए वा तदपि च पातु कन्पत नोचर बल हस्तपादचरचमसप्रक्षालगार्थम, तत्र हस्ती पाठीच प्रसिद्धौ। चर = अन्नपात्र, यस्मिन् भिक्षान स्थाप्यते । चमसो-दर्विका-परिवेपणपात्र 'चमचा' इति प्रसिद्धम् , है, अतिनिर्मल नहीं होन पर ग्राह्य नहीं हो सकता । (से वि य परिपए णो चेवण अपरिपूए) अतिनिर्मल होने पर भी वस्त्र से छाना जाने पर ही कल्पित कहा गया है, अनउना पानी अपने उपयोग म लाने का निषेध है । (से नि य ण दिण्णे णो चेव ण अदिण्णे) उना हुआ होने पर भा क्सिी दाता के द्वारा दिया गया ही ग्रहण करने के योग्य रहा है, पिना दिया हुआ नहीं। (से वि य पिरित्तए णो चेव हत्य-पाय-चरचमस-पकवालणडाए) दिया गया भी जल का उपयोग केवल पाने के लिये ही करने की आना हे, हाथ-पैर, चरु-भाजन पान पर चमचा धोने के लिये उसका उपयोग निहित नहीं है, अथात हाथ पैर आदि धोने के काम म उसको नहीं ला सकते, (सिणादत्तए वा) अनहप्पसण्णे) २७ सपा पY मतिनिभा डाय तो? पाहा २४ छ, यतिनिर्भण न डाय तो पाहा य शतु नथी (से वि य परिपूए णो चेर ण अपरिपूए) भतिनिर्भ हवा छत पशु पत्रथा जादु હોય તે જ કલ્પિત કહેલું છે વગર = ળાયેલું પાણી પિતાના ઉપગમા देषानु निषिद्ध छ (से वि य ण दिण्णे णो चेत्र ण अदिण्णे) भागेदु डाय છતા પણ કઈ દાતા દ્વારા અપાએલુ જ ગ્રહણ કરવા ગ્ય કહેવામાં આવ્યુ छे, 4 सीधेलु नहि (से वि य पिपित्तए णो चेर हत्य-पाय-चन-चमस-पम्सालणट्टाए) मा डाय तपासना उपयोग प चावा माटे ४ ४२વાની આજ્ઞા છે, હાથ-પગ, ચરૂ-ભેજન પાત્ર, તેમજ ચમચા દેવા માટે તેને ઉપયોગ કરો વિહિત નથી, અથાત્ હાથ પગ આદિ ધેવાના કામમાં तेना उपयोगी साय नल (मिणाइत्तए वा) तेभन तेन Cपयोग स्नान
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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