Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पोयपपिणी-टीका सु २१ अम्यडपरिग्राजशिष्यविहार पुरिमताल णयर सपहिया विहाराए ॥ सू० २१ ॥
मृलम्-तए ण तेसिं परिव्वायगाण तीसे अगामियाए छिपणोबायाए दीहमद्धाए अडवीए कचि देसंतरमणुपत्ताण कृलेण' गगाया महानया उभयत पुग्न उभयतटाभ्याम् , 'कपिलपुरानो णयराओ पुरिमताल गयरं मपट्ठिया विहाराए' काम्पियपुगनगग पुग्मिनाल नगर मप्रस्थिना विहाराय-विहर्तुम् ॥ मू० २१ ॥
टीका-'तए ण' दयादि । 'तए ण' तत सल्ल 'तसिं परिवायगाण' तेपा परिवाजकानाम्, 'तीसे अगामियाए ' तस्या अग्रामिकाया ग्रामसम्बधहिताया - गागादूरवति या इत्यर्थ , 'छिन्नोवायाए' रिलापाताया =जनागमनिगमरन्तिाया-- निर्जनाया इत्यर्थ , 'दीहमद्धाए' दाऽवाया =ीमागाया-प्रा तरास्थिताया इत्यर्थ 'जडवीए' अव्या =उनस्य 'कचि देसतरमणुपत्ताण' किञ्चिदेवा तरमनुप्राप्तानाम् महागईए उमओ कलेण) गगा नदी के दोनों तटा से होग, (कपिलपुराओ जयरामो पुरिमतालणयर मपट्ठिया) कापिन्यपुर नगर से पुरिमताल नगर की ओर विहार के लिये निस्ले ।। सू० २१ ।।
'तए ण ' इत्यादि।
(तए ण) इसक वाद (तेसि परिवायगाणं) उन परिमाजका का (तीसे अगामियाए अडवीए) जन कि वे चलते २ एक भयर अटा म आ पहुँचे, जो ग्राम के सम्बध से सर्वथा रहित थी-ग्राम से बहुत दूर थी, (डिन्नोवायाए) इसलिये यहा पर मनुप्यों का संचार निलकुल ही नहीं था, अथात् वह अटवा निर्जन था, (टीहमद्धाए) रास्ते इसके बडे विकट थे, (कचि देसतरमणुप्पत्ताण) इसका थोडा मा हा भाग इन्हनि तय कर पाया ७५२ धने (कपिल्लपुराओ जयराओ पुरिमतारणयर सपद्विया) अपिल्य५२ નગરથી પુરિમતાલ નગરની તરફ વિહાર માટે નીકળ્યા ( ૨૧)
" तए ण" त्या
(तए ण ) त्यार पछी (तसिं परिल्यायगाण) पसिनाsी, (तीसे अगामियाए अटवीए) त्यारे यासता यासत मे४ सय ७० पटपी (वन)भा मावी પહોચ્યા કે જે વન ગામને સબ ધથી સવા રહિત હતુ–ગામથી બહુ દૂર हेतु (छिनोवायाप) तथा गाड़ी मनुध्यान। भारमियर ४ नहातो गेटवे ३ ते पन नि तु (दीहमद्धाए) तेना रता मधु विट ता (कचि