Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पोषधषिणी-टीका सू ८ असंयताना देवत्येनोपपाते हेतुप्रदर्शनम् ५११ भुजतरो वा काल अप्पाण परिकिलेसति, परिकिलेसित्ता कालमासे काल फिच्चा अग्गयरेसु वाणमतरेसु देवलोएसु देवत्ताए उवातारो भवति, तहि तेर्सि गई, तहि तेसि ठिई, तेहि तेसिं उद्याए पण्णत्ते । तेसि ण भंते । देवाण केवड्य काल ठिई पण्णता?, गोयमा । दसवाससहस्साड ठिर्ड भूयम्तर रा कालमा मान परिगयन्ति-'अप्पतरो भुजतरो' इत्युभयन द्वितायार्थे प्रथमा, 'परिफिलेसित्ता' परिपेक्ष्य 'कालमासे' कालमासे कालवसरे 'काल फिच्चा' काल कृत्वा 'अग्गयरेमु वाणमतरेसु देश्लोमु देवताए उववत्तारो भाति अयतमेषु व्यतरेपु देव लोकेषु देववेनोपपत्तारोभति-अन्यतमेपु-बहना म ये एकतरेषु देवलोकेषु उपपात प्राप्नुवन्ति, 'तहिं तेसिं गर्ट तहिं तसिं ठिई तहिं तेसिं उपाए पण्णत्ते' तर=दवलाफ तेपा गति , तर तेपा स्थिति , तर तपामुपपात प्रनप्त । 'तेसि ण भते' देवाण केनदय काल ठिई पण्णत्ता' तेपा सलु भन त । दवाना फ्रियन्त काल स्थिति प्रनता , ' गोयमा ' दसमाससहस्साइ ठिई पण्णत्ता' हे गौतम । दशपर्पसहस्राणि स्थिति प्रजमा-वर्षागा दशसहस्राणि
स, चाहे ये सब कष्ट जीप अल्पकाल तक सहे या बहुतकाल तक सहे, परतु इन कष्टों से जो अपना आत्मा को येशित करते हे वे मरणकाल प्राप्त होने पर मर कर किसा एक व्यतरदेवों के देवलोक मे देवरूप से उत्पन्न होते हे, (तहि तेसि गई तर्हि तेसि ठिडे तहि तेसि उवगए पण्यात्ते) इसलिये वहीं पर उनकी गति, वहीं पर उनकी स्थिति और वहा पर उनका उपपात होता है। (तेसि ण भते । देवाण केवश्य काल ठिई पण्णत्ता) हे भदत । वहा पर उन देवो का कितने काल तक की स्थिति होती है ? (गोयमा! दसवाससहस्साद ठिई पण्णत्ता) गौतम । सुनो, वहा पर उनकी स्थिति दसहजार वर्ष को होता
પરિતાપને સહન કરીને-ચાહે તે બધા કષ્ટ જીવ થોડો વખત નહન કરે અથવા લાબા કાળ સુધી સહન કરે પર તુ કોથી જે પિતાના આત્માને લેગિત કરે છે તે મરવાલ પ્રાપ્ત થતા મરીને કોઈ એક વ્યન્તર દેવના ६५ मा ३१३ Grपन्न थाय छ, (तहिं तेसि गई तहिं तेसि ठिई तहिं तेसि उपवाए पण्णत्ते) साथी त्या तभनी गति, त्या मनी स्थिति, गने त्यास तभनेGyात थाय छ (तेमिण भते । देवाण देवइय काल ठिई पण्णता ? )
महता त्या ते वानी से स्थिति छोय ? (गोयमा । दसपास