Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पीयूषयषिणी-टीका सू ९ अण्डयद्वयादीनामुपपातविषये गौतमप्रश्न ५१९ काल किच्चा अण्णयरेसु वाणमतरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवति, तहि तेसिं गई तर्हि तेसि ठिई, तहि तेसि उववाए पण्णत्ते। तेसिंणभते देवाणं केवडयंकाल ठिई पण्णत्ता? गोयमा मक्लिष्टपरिणामा महारौद्र यानाऽऽवशन देवव न लभते, अत अमक्लिएपरिणामा इति विशिष्य प्रदर्शिता , ते कालमासे काल बना, 'अण्णयरेसु वाणमतरेसु देवलोएसु देव ताए उववत्तारो भाति' अन्यतमेषु व्यतरपु देवलोकेषु देव वेनोपपत्तारो भवन्ति, 'तहिं तेसि गई' तर तेषा गति , 'तहि तेसिं ठिई। तन तेपा स्थिति , 'तहि तेर्सि उव
वाए पण्णत्ते' तर तेषामुपपात प्रजम । 'तेसिं ण भते ! देवाण केवइय काल ठिई __ पण्णत्ता १ तेपा सल भदन्त ' देवाना कियन्त काल स्थिति प्रनमा , 'गोयमा बार
"मिलिट्टपरिणामा) और जिनक परिणाम मरिष्ट नहीं होते है, ऐसे जीव (अण्णयरेसु वाणमतगेसु देवलोएमु देवताए उवात्तारो भवति ) किसी एक व्यन्तर देव को पर्याय से उपन होते है । (तहिं तेमि गई, तर्हि तेसि ठिई, तहिं तेर्सि उववाए पण्णत्ते) वहीं पर उनको गति, वहीं पर उनका स्थिति एव वहीं पर उनका उपपात कहा गया है, (तेसि ण भते ! देवाण केवडय पाल ठिई पण्णता) हे भदत । वहा उन जीवों को
(१) मक्लिष्टपरिणामा क मद्भाव मे जायों को दवगति का वध नहा होता है । महा आर्तर्गदध्यान के परिणाम सक्लिष्ट परिणाम है, अमक्लिप्ट परिणाम ही देवगति को प्राप्ति में कारण है, इस बात को प्रदशित करने के लिये "असफिलिपरिणाम" इस पद का प्रयाग किया है।
र भातने लेट छ, '(असकिलिट्रपरिणामा) मने रेनु परिणाम-241 साटन थाय मेवा ७१ (अण्णयरेसु वाणमतरेसु देवलोग्सु देवत्ताए उववत्तारो भवति) ६ मे व्यतर पक्षोभा व्यत२-हेपनी पर्यायथी 64न्न थाय छ (तहि तेसि गई तहिं तेसिं ठिई तहिं तेसिं पाए पण्णत्ते) त्यातभनी गति, त्या तेमनी स्थिति, तभा त्या तमना पात उडेपामा माथ्यो छ (तेसिं ण भते । देवाण क्व इय काल ठिई पण्णत्ता) महत। त्यात वोनी स्थिति सजनी मनाची
(૧) સકિલષ્ટ પરિણામના સદભાવના જીવોને દેવગતિને બધ થતો નથી મહા–આરીદ્રધ્યાનનું પરિણામ સકિલષ્ટપરિણામ છે અસ કિલષ્ટ પરિણામ પણ દવગતિની પ્રાપ્તિમાં કારણભૂત છે એ વાત પ્રદર્શિત કરવા 'असकिल्पिरिणाम" से पहना अयोस ४यो छ