Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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औपपातिकको पासित्ता पाडियाकपाडियकाई जाणाई ठवेंति, ठवित्ता जाणेहितो पच्चोरुहति, पञ्चोरुहिता, वहहिं खुजाहिं जाव परिक्खित्ताओ जे. णेव समणे भगव महावीरे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता समण भगवं महावीर पंचविहेण अभिगमेणं अभिगच्छति, 'पासंति पश्यति, 'पासित्ता' दृष्ट्या, 'पाडिया पाडियकाइजाणाइठवेति' प्रयेकप्रयंकानि यानानि स्थापयति, स्थापयित्वा, 'जाणेहितो पच्चोरुहति' यानेभ्य प्रयवरोहति अवतरीत, 'पच्चोरुहिता' प्रत्यवरुद्य, 'यहूहिं सुजाहिजाब परिस्वित्तायो' बहीमि कुन्जिकामियावप रिक्षिप्ता -परिवेटिता यावच्छन्दापूर्वोक्ता विविधदेशजातिसमुद्मूता प्राधा , जेणेव समण भगव महावीरे तेणेव उवागच्छति यत्रैव श्रमणोभगवान् महावीरस्तरेयोपागच्छन्ति,'उवागरिउत्ता' उपागत्य 'समण भगव महागीर परिहेण अभिगमेण अभिगच्छति' श्रमण भगवत महावीर पञ्चविधेनाऽभिगमेनाभिगच्छति, पञ्चविधमभिगमन स्फुटीकरोति-'त जहा' तद्यथा स्वरूप छत्रादिकों को देखा, (पासित्ता) देस कर उन सबोंने (पाडियकपाडियकाइ जाणार ठवेति) अपने २ (पृथक् २) यानों को रोक दिया और वे (जाणेहितो पच्चोरुहात) उन यानों से नीचे उतरी, (पच्चोरुहित्ता) उतर कर (वहहिं खन्नाहिं जाव परिक्खित्ताआ जेणेव समणे भगव महावीरे तेणेव उवागच्छति) उन अनेक कुब्जादिक दासिया से परिवृत होती हुई वे जहा श्रमण भगवान् महावीर थे वहा पर आयीं, (उवागच्छित्ता) आकर उन्हों ने (समण भगव महावीर पचविहेण अभिगमेणं अभिगच्छति) प्रभु के निकट जाने के लिये पाच प्रकार के अभिगमनों को अच्छी तरह धारण किया। वे पाच प्रकार के अभिगमन ये है-(सचित्ताण दव्याण विभोसरणयाए, अचित्ताण दव्याण आव શ્રમણ ભગવાન મહાવીરથી જરા દુર રહેલા તીર્થ કરના અતિશય સ્વરૂપ छत्राहिने नेया, (पासित्ता) धन मधी (पाडियपाडियकाइ जाणाइ ठोति) पातपाताना (नुहा नुहा) याना-स्थान राजी हीधा, मने तमा (जाणेहितो पच्चोरुहति) ते यानीमाथी नाय तरी, (पच्चोरुहिता) तीने (बहूहि खुजाहि जाव परिक्खित्ताओ जेणेव समणे भगव महावीरे तेणेव उवागच्छति) ते मन કwા આદિક દાસીઓના પરિવાર સહિત જ્યા શ્રમણ ભગવાન મહાવીર હતા त्या मावी, (मागन्छित्ता) मादीन तमामे (समण भगव महावीर पचविहेण अमि गमेण अभिगन्छति) प्रभुनी पासे ४१ भाटे पाय र मनिशमनाने सारी शव पारण यो त पाय Asian अभिगमन मा छ-(सचित्ताण दाण