Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पोपण टीका सृ ५६ भगवतो धर्मदेशना
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णिग्गथे पावणे मच्चे अणुत्तरे केलिए ससुदे पडिपुणे णेयादयतेन प्रायेन । 'धम्ममाउस' धर्ममाग्याति - ' उणमेव णिग्गथे पात्रयणे सच्चे ' इनमे नर्स प्रवचन सयम् - इ = प्रयतया नियमान, नेग्रे य-निर्ग्रन्याना -क्रयभारग्रथिरहिताना यमिना मम्यपि प्रवचनम् = आगम, सय-मद्भ्यो हित वास्तविकच | अणुत्तरे' अनुत्तरम् - नास्युत्तर यस्मात, नास्मा प्रधानतममन्यदस्तीति भाव, 'के लिए ' कैनलिक=केपल्प्रिणातम्-अद्वितीय ना, ' समुद्धे' मशुद्रम् = कपातिभि शुद्र सुवर्णमिव निर्दोषम्, 'पडिपुण्णे' प्रतिपूर्णम् सर्वथा समग्र-सूनापेक्षया मानानाम, अधी पेक्षया चाकाङ्क्षाऽव्याहागाने भिर्वर्जितम् ' णेयाउए' नैयायिक्म् = न्यायानुगत प्रमाणातिम्, 'सहकरणे' अन्यर्तनम् = मायात्यिन्यच्छेदनक्षमम्-तद्भावभावितानां है ।'' भगवान न प्रकाशतर से भी धर्मोपदेश किया । जैसे- ( टणमेव णिग्गथे पात्रयणे सच्चे ) प्रयतया विद्यमान यह निर्यया द्रव्य एव भावरूप ग्रन्थि से रहित म्यमियों का प्रवचन -आगम सय-भव्यों का हितकारक एव यथार्थ है । (अणुत्तरे ) यह अनुनर है - इससे उत्तर- प्रधान और दूसरा कोई नहीं है । (के लिए ) कारण कि यह केवलनाना द्वारा प्रगति हुआ है, इसलिये यह अद्विताय है । ( समुद्धे ) कपान्कि द्वारा शुद्ध किये हुए सोने के समान यह शुद्ध है । ( पडिपुणे ) यह सर्वथा प्रतिपूर्ण है, न तो सून का अपक्षा से इसम माना एन बिंदु आदि के अध्याहार की आवश्यकता है और न अर्थ की अपेक्षा से इसमे आकाक्षा आदि के अ याहार को आवश्यकता है, अन्न प्रकार से यह पूर्ण है। (नेयाउए) उस भगनपनि आगम में किसा _ प्रमाग वा नहा आती है । ( सहकत्तणे ) माया मिध्यान एव निदान अच्य द्वारा प्रहमित रे हे 'चम्ममाइक्स' लगवाने अनशन्तन्वी पशु धभोपदेश यो तेसडे (इगमेन णिग्गये पानयणे समचे) प्रत्यक्षतना (नग्न भाभेल ) વિદ્યમાન (મેાજીદ) મા નિત્થા-દ્ર‚ તેમજ ભાવરૂપ ગ્રન્થિથી રહિત નય મીઓના પ્રવચન-આગમ સહ-ભવ્યોને માટે હિતકા- તેમજ યયા છે ( अणुत्तरे ) मा अनुत्तरमानाथी उत्तर - प्रवान (मुख्य) पीलु डाई नथेो (लिए ) ठार या देवणज्ञानी द्वारा उठीत थयेलु (श्यामेसु) छे ते भाटे या अद्वितीय छे (ससुद्धे) उपाधि द्वारा शुद्ध उरेसा सोना लेषु ते शुद्ध (पडिपुणे) येथे सर्वदा परिपूर्य हे-सवनी अपेक्षाये तेभा માત્રા તેમજ બિંદુ આદિના અધ્યાહારની આવશ્યક્તા નવી અને અર્થની અપે ક્ષાથીતેમા આાક્ષા આદિના અધ્યાહારની પણ આવશ્યક્તા નથી તમામ પ્રકારે मे पूत्यु हे (याउए) मा भगवद्- उपष्टि भागमभा अई पशु प्रभावी
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