Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भोपपातिकको सयाए ३, अमच्छरियाए । देवेसु-सरागसेजमेणं १, संजमासजमेणं २, अकामणिज्जराए ३. चालतवोकम्मेणं ।। तमाइक्खड
स्थानीवा मनुजय प्राप्नुवन्ति । दवामिहतुभूतानि चावारि स्थानानि दर्शयति-'दवस' इत्यादि । देवपु-'सरागसजमेण ' मरागम्यमन-रागेग-आसरत्या सहित सगग से चासो -यमश्च सरागयनमस्तेन-सम्पायचारित्रण १, 'सजमासजमेण' मयमामयमेनदेशमयमेन २, 'अामणिनराए' असामनिर्नरया-अफामेन अमिलापम तरेण निजेगक्षुधादिसहन तया ३, पालतगोकम्मेण' बालतप कर्मणा माल्सादृश्याद् बाला - मिथ्यादृश , तेषा तप कर्म बालतप कर्म, तेन ४, पतै स्थानींवा देवभव प्राप्नुवतीति भाव । पुन प्रकारातरेग 'तमाइक्सइ' तदारयाति तत् कथयति 'जह णरगा गम्मती' कराने वाले कर्मों का उपार्जन करते है । (देवेस) चार कारणों से जीव देवगति में उत्पन होते है । वे चार कारण ये है-(सरागसजमेण)सरागमयम का पालन करना १, (सजमा सजमेण) देशनिरति पालन करना २, (अकामणिज्जराए) अकामनिर्जरा ३, एव (बालतवोकम्मेण) बाल तपस्या ४ । जिस सयम मे राग (आसक्ति) विद्यमान होता है उस का नाम सरागमयम है । मतलन-कपायसहित चारित्र का पालना सरागमयम है । १२ बारह व्रता का-देशविरति का धारण करना इसका नाम स्यमासयम है। अभिलाषा-इच्छा के गिना क्षुधा आदि का सहन करना इसका नाम अफामनिर्जरा है। मिथ्याष्टियों के तप का नाम बालतप है। इन कामों के करने से जीव देवगति में जाने योग्य कर्मों का उपार्जन करते है। (जह णरगा गम्मती जे णरगा जाय वेयणा णरए।सारीरमाणसाइ दुक्खाइ आतिभा Gur- रावावर उभानु पान ४२ छ (देवेसु) यार ४४२ थी ७५ वतिभा यन्न थाय छ-(सगगेसजमेण) ससस सयभनु पासन ४२७ १, (सजमासजमेण) शिविरतिनु पासन ४२७ ०, (अकामणिज्जराए) माभनिक २॥ ३, तेमन (बालतवोकम्मेण) मालतपस्या४ सयभमासस-मासहित વિદ્યમાન હોય છે તેનું નામ સરાગ–સયમ છે મતલબ-કષાય સહિત ચાર ' ત્રનું પાલન કરવું તે સરાગસ યમ છે (૧) ૧૨ બાર વ્રત-દેશવિરતિ ધારણ કરવા તેનુ નામ સમાસ યમ છે (૨) અભિલાષા-ઇચ્છા–વિના ભૂખ આદિ સહન કરવું તેનું નામ અકામ નિજેરા છે (૩) મિથ્યાષ્ટિના તપનું સાથ આલતપ છે (એ આ કામ કરવાથી જીવ દેવગતિમાં જવા ગ્ય કર્મોનું