Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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औपपातिकको पुस्पाणा रागादिदोपपत्वात् अम्मटावित इति, तमतगिरासार्थमिदमुक्तम् । 'अस्यि देवा अत्थि देवलोया' सति देवा -भवनपयादय , सन्ति देवलोका -देवाना लोका%D स्थानानि सौधमादीनि । यत्पाहु-न सति देवादयोऽप्रयक्ष वात् इति, तमतत्र्युटासार्थमिद मुक्तम् , 'अत्यि सिद्धी अत्थि सिद्धा' अस्ति सिद्रि , सन्ति सिद्धा-सिद्धि सिन्यन्ति निष्टितार्था भवन्ति यस्या सा तया, सिद्धिमन्त मिदा । 'परिणिबाणे' परिनिर्वाण मस्ति-परिनिपाण-कर्मकृतस तापोपगान्या मुम्बचम् । नि शेषत सकलकर्मक्षयजन्यमायन्तिक सुखमित्यर्थ । 'अस्थि परिणिन्युया' मन्ति परिनिर्वृता =अपुनरावृत्या सकलस ताप दर्शक नहीं हो सकते है उसी प्रकार कोई भी व्यक्ति रागादिक से विशिष्ट होने के कारण अताद्रियार्थ पटायों का द्रष्टा नहीं हो सकता है। इस प्रकार जो यह मीमासको की मा यता है उस मान्यता को दूर करने के लिये अताद्वियार्थ द्रष्टा की यह स्थापना की है । (अत्थि देवा अत्थि देवलोया) पुण्यजनित अलौकिक क्रीडा का जो अनुभव करते हैं उनका नाम देव है । वे देव भवनपति आदि के भेद से ४ प्रकार के हैं। इनके रहने के स्थान भी है। जिहे स्वर्ग या देवलोक कहते है । जो यह कहते हैं कि अप्रत्यक्ष होने से देवादिक नहीं है उनके इस मन का निराकरण करने के लिये देवों का स्वरूप कहा है । (अस्थि सिद्धा अत्थि सिद्धा) सिद्धि है, और सिद्वि जिन्हे प्राप्त हो चुकी है ऐसे सिद्ध भी हैं । (परिणि याणे) परिनिर्वाग-मुक्ति है। कर्मकृत सताप की उपशाति से उद्भूत सुस्थत्व का नाम परिनिवाग हे । समस्त कर्मों के अत्यत विनाश से जन्य जो आत्यतिक सुख है उसका नाम सुस्थत्व हे । (अत्थि परिणिचुया) अपुनरावृत्तिविशिष्ट होने से सकल मताप આથી જેમ આપણે રાગ આદિ સ પન્ન હોવાથી અહી ક્રિયાથના દર્શક બની શકતા નથી તેજ પ્રકારે કોઈ પણ વ્યક્તિ રાગ આદિકોથી વિશિષ્ટ હોવાના કારણે અતી ક્રિય પદાર્થોના દ્રષ્ટા બની શકે નહિ એવી જે આ મીમાંસાના માન્યતા છે તે માન્યતાને દૂર કરવાને માટે અતીઢિયાર્થ દ્રષ્ટાની આ સ્થાપના
१ (अत्थि दया अस्थि देवलोया) पुष्यनित मसी ना रे मनु ભવ કરે છે તેમનું નામ દેવ છે તે દે ભવનપતિ અદિના ભેદથી ૪ પ્રકા રના છે તેમના રહેવાના લેઇ એટલે સ્થાન પણ છે જે એમ કહે છે કે અપ્રત્યક્ષ હોવાથી દેવ આદિ નથી તેમના આ મતનું નિરાકરણ કરવા भाटे यानु २१३५ उखु छ (अत्थि सिद्धी अस्थि सिद्धा) सिद्धि छ भने सिद्धि ने प्राप्त-य/ गई छ वा सिद्ध प छ (परि णियाणे) परिनिवार-भुति छ ४भत २ सता५ तनी पतिथी मत्पन्न થત જે સુસ્થત્વ તેનુ નામ પરિનિર્વાણુ છે સમસ્ત કર્મોના અત્યંત વિના शथी पहा तु २ मावति सुम छ तेनु नाम सुस्था छ (अत्यि परि