Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पोयूपयषिणी टीका सु ५० फूणियस्य भगघदुपासना भगव महागीरे तेणेव उवागच्छड, उवागच्छित्ता समण भगव महावीर पचविहेण अभिगमेण अभिगच्छड, तजहा-(१) सचित्ताण दवाण विओसरणयाए, (२) अचित्ताण दव्याणं अविओसरणयाए, (३) एगसाडिय उत्तरासगकरणेणं, (४) देशाय गन्द, 'पाहणाओ उपानही 'बालवीयणि' बालन्यजनीम्-चामरम्, एतानि त्यक्या, 'जेणेव समणे भगा महागीरे' योय अमणो भगवान महावार , 'तेणेव उवागन्छइ, उवागन्छित्ता' तत्रोपागच्छति, उपागय, 'समण भगव महावीर' श्रमण भगवन्त महावार 'पविहेण अभिगमेण अभिगच्छद' पञ्चविधेनाऽभिगमेनाभिगच्छतिपञ्चप्रकारेण अभिगमेनः-सकारविशपेग अभिमुस गच्छति, 'तजहा' तद्यथा-तपञ्चविधाभिगमन यथा-' सचित्ताण दवाण विओसरणयाए' सचित्ताना इयाणा व्युसर्जनतयाहरितफलकुसुमादाना वस्तूना त्यागेन १, 'जचित्ताण ढव्याणं अविओसरणयाए ' अचि. ताना द्रयाणामन्युसननतया, अचित्ताना वस्त्राभरणादानाम् अयागन २, 'एगसाडियमुत्ततलवार, छर, मुकुट, उपानत-पगरग्न, एव वालव्यजनी-चामर । फिर वे (जेणेव समणे भगव महावीरे तेणेव उवागच्छद) जहा श्रमण भगवान महावीर विराजमान ये वहाँ पर आये, (उवागच्छित्ता समण भगव महावीर पचविहेण अभिगमेण अभिगच्छइ) जाते हा वे पाच प्रकार के अभिगमन-सत्कारविशेप से युक्त होकर प्रभु के सन्मुग्ध पहुंचे। व पाच प्रकार के मकालिए इस प्रकार है-(सविताण दवा विओसरणयाए) हरित फल फूल आदि सचित्त द्रव्यां का परित्याग करना, (अचित्ताण दव्याण अविओसरणयाए) वस्त्र आभरण आदि अचित्त द्रव्या का परित्याग नहा करना, (एगसाडियमुत्तरासगकरणण) भापा का यतना के लिये अबण्ड अथात् जो साया हुआ न हो ५॥२॥ा, तभी पासल्यानी-याभ२ पछी तेमा (जणेन समणे भगर महावीरे तेणे यागच्छइ) जय श्रम मनपान मडावा मिशता उता त्या माव्या (उजागच्छित्ता समण भगव महावीर पचरिहेण अभिगमेण अभिगच्छइ) माता જ તેઓ પાચ પ્રકારના અભિગમન-સત્કાવિશેષથી યુક્ત થઈને પ્રભુના सन्भु पडे ते पाय जाना समाविशेष मा अडान छ-(सचित्ताण दवाण निओसरणयाए) सीसा ॥ ३ मा मथित्त द्रव्याना परित्याग ७२।, (अचित्ताण याण अपिजोमरणयाए) १४-माम माहि मयित द्रव्यांनी परित्याग न ३२वो, (एगसाडियमुत्तरासगकरणेण) लापानी यतना