Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पोयूपयपिणी टोका सु ५४ फूणिकम्य भंगयदुपासना भगव महावीरे तेणेव उवागच्छड, उवागच्छित्ता समण भगव महावीर पचविहेण अभिगमेणं अभिगच्छड, तजहा--(१) सचित्ताण दव्याण विओसरणयाए, (२) अचित्ताणं दव्याणं अविओसरणयाए, (३) एगसाडिय उत्तरासगकरणेणं, (४) देशाय शन्द , 'पाहणाओ उपानही 'पालवीयणि' वाल यजनीम्-चामरम्, एतानि त्यक्त्वा, जेणेष समणे भगर महागीरे' यव अमणो भगवान महावार , 'तेणेव उआगन्छइ, उवागन्छित्ता' तोपागच्छति, उपागय, 'समण भगव महावीर' श्रमण भगान्त महानार 'परिहेणं अभिगमेण अभिगन्द' पञ्चविधेनाऽभिगमेनाभिगच्छतिपञ्चप्रकारेण अभिगमेन=सकारविशपेग अभिमुस गच्छति, 'तजहा' तद्यथा-तपञ्चविधाभिगमन यथा-'सचित्ताण दवाण विभोसरणयाए' सचित्ताना व्याणा व्यु सर्जनतयाहरितफफुसुमाराना वस्तूना त्यागन १, 'अचित्ताण दव्याणं अपिओसरणयाए ' अचि त्ताना द्रयाणामव्युसर्जनतया, अचित्ताना वस्त्राभरणादानाम् अत्यागन २, 'एगसाडियमुत्ततलवार, छर, मुकुट, उपानत्-पगरस, ण्व वालन्यजनी-चामर । फिर वे (जेणेव समणे भगर महावीरे तेणेव उवागच्छद) जहा अमण भगगन महावार निराजगान ये वहाँ पर आये, (उपागन्छित्ता समण भगव महावीर पचविहेण अभिगमेण अभिगच्छइ) जाते ही वे पाच प्रकार के अभिगमन-सत्कारविशेष से युक्त होकर प्रभु के सन्मुप पहुँचे । व पाच प्रकार के मल्कारविशेष दस प्रकार है-(सचित्ताण दवाण विओसरणयाए) हरित फल फूल आदि सचित्त द्रव्या का परित्याग करना, (अचित्ताण दव्याण अविओसरणयाए) वस्त्र आभरण आटिं अचित्त द्रव्या का परित्याग नहा करना, (एगसाडियमुत्तरासगकरणेण) भाषा का यतना के लिये अग्यण्ट अथात् जो साया हुआ न हो ५१२, तमस पासव्यसनी-न्याभ२ पछी तया (जणेन समणे भगन महावीरे तेणेर उबागच्छइ) या अभए सगवान महावीर मिता उता त्या माव्य! (उजागन्छित्ता समण भगव महावीर पचरिण अभिगमेण अभिगन्छड) Aqdi જ તેઓ પાચ પ્રકારના અભિગમન-નાવિશેષથી યુકત થઈને પ્રભુના सन्भुण पाया ते पाय मारना सलाविशेष मा हारना -(सचित्ताण दवाण निओसरणयाए) सीख ३७१ ३ मा अथित्त व्यानो परित्याग अयो, (अचित्ताण वाण अपिओमरणयाए) १- २ याहि मयत
योनी परित्याग न ३२वी, (एगसाडियमुत्तरासगकरणेण) सापानी यतना