Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मणि-कणग-रण- विमल -महरिह- णिउणो- विय- मिसिमिसत - विरइय-सुसिलिह - विसिह लट्ट - संटिय-पसत्थ- आविद्ध- वीर-वलए, प्रलम्बमानेन पटेन वत्रेण मुक्त = मुनि यस्तम् उत्तरीयम् = उत्तरासङ्गवत्र येन स तथा, 'गाणा - मणि - कणग - रयण - विमल - महरिह - णिउणो त्रिय- मिसिमिसत - विरहयसुसिलिट - विसि - लठ्ठ - संठिय-पसत्य - आविद्ध-वीर - वलए' नाना-मगि- कनकरत्न - विमल - महार्ह - निपुण - परिकर्मित देतीयमान- निरचित- मुश्लिष्ट - विशिष्ट-एट-स्थित - प्रशस्ता - ssविद्ध-वार- वलय नानाविधानि माणिकन+रत्नानि = चद्रकाता दिमगि- सुवर्ण - कर्केतनादि - रत्नानि यस्मिन् स अत एव निमल निर्मल महार्ह = महता योग्यथ तथा निपुणपरकर्मितदेदीप्यमान निपुणेन-शिल्पकलादक्षेत्र निपिता 'उविय' परिकर्मित = मस्कारमापादित, तत एव 'मिसिमिसत' देदाप्यमान दीप्तिसम्पनथ, पुन - विरचित मुश्लिष्ट - विशिष्ट मस्थित – विरचित-निर्मित मुश्लिष्ट, शोभनसधिक विशिष्टम् = उत्कृष्टम् लष्ट= मनोहर मस्थित पस्थानम् - आकारो यस्य स तथा, अत एव - प्रगस्त = प्रशसनाय, एतादृश आविद्ध = परिधृत वीरपलयो = विजयवरयो येन उत्तरासंग किया था । ( णाणा - मणि - कणग- रयण- विमल-महरिह- निउणो-त्रिय मिसमिसत - विरइय-मुसिलिट्ठ - विसि - लट्ठ - सठिय-पसत्थ-आविद्ध- वीरवलये) देवीप्यमान तथा निपुग कारीगरों द्वारा सुमस्कारित एव बडे भाग्यगालियों के धारण करने योग्य ऐसे निर्मल अनेक मगियों एवं रत्नों से युक्त सुवर्ण के बने हुए वीरवलय का कि जो सुसधि से सान, उत्कृष्ट, मनोहर और सुन्दर आकार से विशिष्ट तथा प्रशसनीय था इनने धारण कर स्क्वा था । जिस वलय ( कडे) को धारण कर शत्रु पर विजय प्राप्त की जाती है उस वलय का नाम वारवलय हे अथवा जो इस वलय को धारण करता है वह
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हेतु, माथी भेनारने मानह थतेो हतो (पालन पलबमाण पड-सुकय- उत्तरिज्जे) छाया साया वस्त्रनु तेभाणे उत्तरायण (पछेडी) ज्यु हेतु (नाणा - मणि-कणग रयण विमल महारह निउगो विथ मिसमिसत - विरइय सुसिलिट्ट् विसिट्ठ-लट्ठ सठिय पस त्थ आविद्ध-वीरपल्ये) हेहीप्यमान सने निथुए अरीगरो द्वारा सुस स्मारित, તેમજ ભાગ્યશાળીઓને ધારણ કરવા ચેાગ્ય એવા નિળ, અનેક મણુિએ તથા રત્નાવર્ડ યુક્ત સેનાનુ બનાવેલુ વીરવલય જે સુસધિથી સ પન્ન, ઉત્કૃષ્ટ, મનહર અને સુદર આકારથી વિશિષ્ટ તથા પ્રશ્ન સનીય હતુ તે તેણે પ્રાણ કર્યું હતુ જે વલય (કડા)ને ધારણ કરવાથી શત્રુ ઉપર વિજય મેળવાય છે તે વલયનુ નામ વીરવલય છે અથવા જે આ વલયને ધારણ
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