Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ओपपातसूत्र
ए दिप्पमाणे हत्थकखधवरगए सकोस्टमहदामेण उत्तेण धरिज़माणेण सेयवरचामराहि उन्हव्वमाणीहि २ वेसमणे चेव णवई अमरखड सपिणभाए इड्ढीए पहियकित्ती हय-गय-पवरजोहकराय - वसहरूप्पे' मनुजराज - वृषभ-प-मनुराजाना=गना वृषभा = नायका थकार्तिन तैस्तुन्य - मनाङन्यूनतया ममान, उत्तम्मरतार्धस्यापि नावने प्रवृत्तचादिति भान । 'अभ हिय' अभ्यधिक- यथा स्यात् तथा ' राय-तेय लच्छीए' राजतेजोलक्ष्म्या, 'टिप्प माणे 'प्यमान, 'रत्थि खध-वर गए। हम्ति रकध-वर-गत, 'सकोरटमल - अमेण उत्तेण धरिजमाणेण' मकारण्ट मान्य-दाम्ना उण प्रियमाणेन, 'सेय - वर - चामराहिं उज्वमाणीहि उदुन्नमाणीहिं' चेतनरचामरे रूद्र्यमानैस्द्भूय मानै शोभमान 'वेसमणे चेत्र' वैश्रवण इव= रोकपाल कुत्रेर उब 'णरवई' नरपति, 'अमर इसणिभार इड्डीए' अमरपतिसन्निभया इन्द्रा या, 'पहियकित्ती'
थे । 'चक्रवर्ती जैसे थे'-इसका मतलन यह है कि उत्तर भरतार्थ के साधन मे प्रवृत्त होन से चक्रवर्ती जैसे थे । (अज्भहिय रायतेयलच्छीए दिप्पमाणे) जो राजसी तेज से और राजलक्ष्मी से अधिक देदाप्यमान थे। ऐसे ये कि राजा (हत्थि-वध-वर-गए) जब हाथी पर बैठे तन इन्हा ने अपने ऊपर (सफोस्ट-मह- दामेण छत्तेण धरिज्जमान) कोरट पुष्पा का मालाओं से युक्त छन धारण किया, और इनक ऊपर (सेय वर-चामराहि उनमाणी हिं २ ) सफेद चमर ढुलने लगे । इनसे ये ( णरवई) राजा (वेसमणे चैव ) कुबेर के समान दिखने लग | तथा (अमरवड़सण्णिभाए इड्डीए पहियकित्ती ) इन्द्र के
कप्पे ) भाणुसोना राजयोना पशु राम-यवती देवा इता 'यवर्ती જેવા હતા એની મતલબ એ છે કે ઉત્ત ભરતાધ ને સ્વાધીન કરવામા પ્રવૃત્ત હેાવાથી ચક્રવતી જેવા હતા ( अमहिय रायतेयलच्छीए दिप्पमाणे) જેએ રાજસા તેજથી તથા રાજલક્ષ્મીથી અધિક દૈદીપ્યમાન હતા એવા मालिशन (हत्यिक्राध-चरगण) न्यारे हाथी उधर मेहा त्यारे तेभ પાતાના ઉપર (सोरट - मल्ल-मेण छत्तेण धरिज्जमाणेण ) और दयुष्योनी भातासोथी युक्त छन् धारण ज्यु, मते तेभना उपर ( सेयवरचामराहि उच्चमाणीहिं २) सह याभर ढोजावा साज्या तैनाथी तेथे (णरवई) राम (der चेन) मेरा नेवा देभावा साज्या पहियकित्ती ) धद्रना नेवी ऋद्धिना जरगुथी
तथा (अमरवइसणिभाए इड्ढीए विख्यात झीती बाजा तेयो (हय-