Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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__ पोवृषवर्षिणी-टीका सू ५२ भगदर्शनार्थ पूणिस्य गमनम् ११९
वाल-वीयणीए सब्बिड्टीए सव्वईए सव्ववलेण सव्वसमुदएणं सव्वादरेण सव्यविमूईए सबविभूसाए सव्वसभमेण सब-पुप्फ-गध-मल्हा-लकारेणं सव्व-तुडिय-सह-सण्णिणायस्मे म तथा । 'पवीडय-पाल-पीयणीए' प्रान्ति-वाल-व्यजनिर -प्रीजिताप्रचारिता वारयजनिका यस्म म तया, 'सबिड्डीए' मद्ध्या-सर्वया सन्या । 'सव्व ईए' सर्वद्युया मरल्यसामग्णाना प्रभया, 'सयालेण' सर्परलेन-सर्वमै येन, 'सन्चसमुदण' मनसमुन्येन = सर्पपरियागनिसमुदायेन, 'सबारेण' समादरेण सर्वप्रयनेन, 'सव्वविए' सर्वपिम्या=मर्ववभवेन, 'सव्वविभूसाए' सर्वविभूपया = सर्पविषनपथ्यान्धिारणेन, 'सव्वसभमेण' सर्वसम्भ्रमेग = सर्वेण सौमुक्येन स्नमयेन चाञ्चन्यनयर्थ , 'सब-पुप्फ-गर-मल्ला-रकारेण' सर्व-पुष्पग'-मान्या-उलङ्घारण, 'सव्व-तुडिय-सह-सणिणाएण' मर्म-त्रुटित-गढ-मनिनादेन सविधाना त्रुटिताना याद्याना यो गन्द तम्य मनिनादेन-प्रतिध्वनिना । 'मइया ऐसे वे ऋणिक राजा (सब्बिड्डीए) अपनी समस्त राज्य झद्धिसे (सञ्चज्जुईए) समस्त वस्त्र और आभरणों की प्रभासे (सव्ववलेण) अपनी समस्त सेनाओं से (सव्यसमुदएण) अपने समस्त परिजनों से, (सव्वादरेण) आदरम कारप सभी प्रश्नों से (सव्वविभूईए) अपने समस्त ऐश्वर्य से (सव्वविभूसाए) सभा प्रकार के वस्त्राभरणों को शोभा से, (सव्वमभमेण) भक्तिजनित अयधिक उमुकता से (सव्य-पुप्फ-गध-मल्ला-रकारेण) सन तरह के पुप्पा से, सर तरह के गन्ध द्रव्या से, मन तन्ह का मालाओं से, एव सर तरह के अलकारों से (सन्चतुडिय-सह-सणिणाएण) सभी प्रकार के वादित्रों का मधुर ध्वनि से, तथा-(महया णीए) 21 S५२ पाणच्या मर्यात यभर ढोणा घाता, मेवा ते धि: 00 (सव्यिड्डीए) पोताना समस्त राज्य ऋद्धिथी, (मव्यज्जुईए) सभ* तथा सामान प्रभाव पड़े, (सव्यनलेण) पातानी मभन्त मेना। 43, (ससमुत्एण) पोताना भन्न पनि । 43, (मचारेण) मा Hest२ ३५ मा प्रयत्ना १ (सव्वनिभूईए) पोताना समस्त अश्वयं ५, (सविभुसाए) तमाम जान पत्रासोनी शाला 43, (सव्यसभमेण) लाstrin सत्यत Geसुता 43, (सव्व-पुष्फ गध-मल्ला लकारेण) मई પ્રકારના પુષ્પ વડે, સર્વ પ્રકારના ગઘદ્રવ્યો વડે, સર્વ પ્રકારની માળાઓ १ तेभर सर्व प्रधान मसाग, (मत्र तुटिय-मह-मण्णिणारण) सर्व HERना जाना मधु पनि 43, तया (महया इट्टीए) पोतानी विशिष्ट