Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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औपपातिक वेजयती य ऊसिया गगणतलमलिहती पुरओ अहाणुपुवीए सपट्टिया । तयाणतर च णं वेरुलिय-भिमत-विमल-टड पलंबकोरंट-मल्लदामो-बसोभियं चंदमंडलणिभं समसियं विमल आयवत्त पवरं सीहासणं वरमणिरयणपादपीट सपाउयाजोयसमा'असिया' उना-उयापिता, अतग्य ‘गगगतलमगुलिन्ती' गगनतल मनुलिखन्ती व्योमतल स्मृगन्ती-अत्युचा, पुरतो यथानुपून्या सम्प्रस्थिता प्रचलिता । उन वर्ण सन्नाह-वेरुलिय' इत्यादि। तदनन्तर खलु 'वेलिय-भिसंत-विमल-दड' वेइर्यमास मान विमल-रण्डम्-वड़र्यस्य रनविशेषस्य भासमानो-नीप्यमानो विमलो दण्डो यत्र तत् ताहशम्,-'पलव-कोरट-मल्ल-लामोवसोभिय' प्रलापमान-कोरण्ट-मान्यदामोपशोभितम्' प्रलम्बमानेन कोरण्टारयमालोपयोगिकुसुमाना ताना-मालया उपशोभितम् । अतएव-'चद 'मडलणिम' चन्द्रमण्डलनिम-चन्द्रमण्टलेन समानम्, 'समृसिया समुच्छ्रितम्-विस्तारितम् , 'विमल आयवत्त' विमलम् आतपत्रम् , सिंहासन वर्णयानाह-'पवर सीहासण' इति, प्रवर सिंहासनम्, तत् कीदृशम् । इत्याह-वर-मणि-रयण-पाद-पीह' वर-मगि-रन-पाद
वैजयन्ती-विजय नजों को लेकर आगे २ चलने लगे । (तयाणतर च णं) इसके बाद (वेरु लिय-भिसत-विमल-दड पलव-कोरट मल्ल-दामो-चसोभिय चदमडलणिभ सम् 'मिय विमल आयवत्त पवर सीहासण वर मणि-रयण-पादपीठ सपाउयाजोयसमा
उत्त बहु-किंकर-कम्मकर-पुरिस पायत्त-परिक्खित्त पुरओ अहाणुपुबीए सपट्टिय) कितनेक लोग चैदूर्य मणि को प्रभा से प्रकाशित दण्डवाले, लटकती हुई कोरटमाला से सुशोभित, चद्रमण्डलसदृश तथा ऊँचे उठाये हुए ऐसे छर को लेकर आगे २ चले । तथा बहुत से नौकर-चाकर और सैनिक लोग श्रेष्ठ सिंहासनको तथा पादुकासहित, उत्तम मांगઉચી એટલે કે આકાશને અડતી હોય તેવી વિજયજયન્તી વિજયધ્વજા साने साधन मासण माग यासा साज्या (तयाणतर च ण) त्यार पछी (वेरुलिय-भिसत-रिमल-दड पल-कोरट-मल्ल-दामो-चसोभिय चद-मडल-णिभ समसिय विमल आयवत्त पर सीहासण वर-मणि-रयण-पाद-पीठ सपाउयाजोय-समाउत्त बहु-किंकर-कम्मकर-पुरिस-पायत्त-परिक्खित्त पुरओ अहापुणुव्वीप
पटियोansal वैडूर्य भएनी प्रमाथी प्रोशित है , सती કેરાટમાળાથી શોભતા, ચકમ ડલ જેવા, તથા ઉચે ઉપાડેલા છત્રને લઈ