Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पीयूषषषिणी-टीका स २६ भगवदन्तेवासिवर्णनम्
१८१॥ मत्तमातंगा अच्छिद्दपसिणवागरणा रयणकरडगसमाणा कुत्तियासिद्धातप्रवीणतया न किञ्चिदपिरित तेपा भवताति भार । पुनस्ते कीदृशा ? इत्यनकै विशेषणै कथयति-'आयावाय जमइत्ता' आमगादान् उमयित्वा-स्वसिद्धान्तान् पुन पुनरभ्यस्य-अतिपरिचितान् विधाय, 'नलवणमित्र मत्तमातगा' नलवनमिव मत्त- । मातहा-क्रीडायथं पुन पुन प्रवेशेन कमलयन यथा मदोन्मत्ता गजेन्द्रा अतिपरिचित कुन्ति तथैव ते पुन पुनरभ्यासेन निसिद्धान्त परिचित कृतर तोऽतस्ते तत्तुल्या इत्यर्थ । 'अच्छिद-पसिण-चागरणा' अच्छिद्र-प्रश्न-व्याकरणा-अच्छिद्रा -निरन्तरा -धारावाहिकरूपा प्रश्ना, निरन्तराण्युत्तराणि येपु तादृशानि व्यारुग्णानि-विस्तारयुक्तव्याख्यानानि येपा ते-अच्छिद्रप्रश्नव्याकरणा-पुन पुन प्रश्नोत्तरसमुचितत्र्याएयात्रिनिपुगा , अत एव- रयण-करडग-समाणा' रत्नकरण्डक-समाना रत्नाना--मगिमागिक्यादीना करण्डको मञ्जूषा तस्य समानास्तत्तुल्या , करण्डको यथा बहुविधरत्नपूर्णो भवति दृष्टि से बाहर हो । और भी ये कैसे थे ? सो इस बात को आगे के विशेषणों द्वारा सूत्रकार कहते है-(आयावाय जमइत्ता नलवणमिव मत्तमायगा) जिस प्रकार मदोन्मत्त गजराज सरोवर आदि में क्रीडा करने के लिये पुन पुन प्रवेश कर कमलवन से पूर्ण परिचित हो जाते है उसी प्रकार ये भी ज्ञानरूपी सरोवर में क्रीडा करने के लिये पुन २ प्रवेश कर स्वपर-सिद्धातरूपी कमलपन से पूर्ण परिचित थे। (अच्छिद-पसिण-चागरणा) जब ये प्रवचन करते थे तब उसमें श्रोताजन धारावाहिकरूप से प्रश्न किया करते थे, उनका उत्तर भी ये उसा ढग से दते थे । (रयण-करडक-समाणा) इसलिये ये ऐसे ज्ञात होते थे कि मानों रत्नकरण्डक है, जैसे रत्नों का करण्डक अनेक प्रकार के उत्तमोत्तम अमूल्य रत्नों से भरपूर होता
ता ते पात माना विशेषाद्वारा सूत्रधार ४ -( आयावाय जमइत्ता नलवणमिव मत्तमायगा) २वी शत महोन्मत्त २१ सरावर पाहिमा ક્રીડા કરવા માટે વારંવાર પ્રવેશ કરીને કમલેના વનથી પૂર્ણ પરિચિત થઈ જાય છે, તેવી જ રીતે તેઓ પણ જ્ઞાનરૂપી સરોવરમાં કીડા કરવાના કારણે વારવાર પ્રવેશ કરીને સ્વર-સિદ્ધાતરૂપી કમલવનથી પૂર્ણ પરિચિત હતા (अच्छिद-पसिण-वागरणा) त्यारे तसा अपयन ४२॥ सता त्यारे तमा श्रोता જને એકધારી રીતે પ્રશ્ન કર્યા કરતા હતા અને તેના ઉત્તર પણ તેઓ તેવી જ રીતે माता ता (रयण करडग-समाणा) मेथी तो सवा साता त , and ત્નને કરડિએ હોય જેમ રને ડર ડિએ અનેક પ્રકારના ઉચામાં ઉચા