Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पोषवषिणो-टीका र ३७ ज्योतिष्कदेषवर्णनम्
રૂર अच्चुयवई पहिहा देवा जिण-दसणु-स्सुया-गमण-जणिय-हासा पालग-पुप्फग-सोमणस-सिरिवच्छ-णदियावत्त-कामगम-पीडगमसौधमादयच्युताऽन्ता कन्या सन्ति, एपुवैमानिका देवा भवति, अत एव सौपाट्यच्युता ताना देवलोकाना पतय =स्वामिन 'पहिवा' प्रदृष्टा =अतिहएं प्रामा दना =पैमानिका । 'निणदसणु-स्मुया गमण-जणिय हासा' जिन-दर्शनोसुका ऽऽगमन-जनित-हामा -जिनदर्शना थों सुकानाम् एपा, देवानामागमन, तेन जनिनो हास =आनढो येषा ते तथा । जिनेन्द्रदर्श नोकण्ठाऽऽगमनजातप्रमादा । सौधर्मादिद्वादशकमाना दारयका इन्द्रा सन्नि, तत्र नवमदशमयोरेक इदो भवति । शनादानामच्युता ताना दशानामिन्द्राणा पालकादीनि मर्मतोभद्रान्तानि दश विमानानि भवन्ति, तान्याह-'पालग १, पुप्फग २, सोमणस ३, सिरिवन्छ ४, णदियावत्त ५, कामगम ६, पीइगम ७, मणोगम ८, विमल ९, सबओभद १० सरिसणामयेज्जेहिं विमाणेहिं ओइण्णा' पालक पुष्पक-मौमनस-श्रीनस-नन्द्यार्त-कामगम-प्रीतिगम-मनोगम-विमल-सर्वतोभद्र-सदृशनामधेयैर्विमानेग्वताणा =ते दग इन्द्रा पाल. महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण और अध्युत ये देवलोक है। ये सौधर्मारिक, वैमानिक देवताओं के रहने के स्थान है । ये देवलोक १० है। इनका कन्प सजा है। ये वैमानिक देव इनके पति है। इन कल्पों में जो उत्पन्न होते हे वे वैमानिक या कल्पवासी देव कहलाते है । (पहिट्ठा) अतिहर्ष को प्राप्त हुए (देवा) ये वैमानिक देवेन्द्र कि जिन्हें (जिण-दसणु-स्सुया-गमण-जनिय-हासा) जिनेन्द्र के दर्शन के लिये उसुकतापूर्वक आगमन से अति आनद हुआ है । (पालग-पुप्फग-सोमणस सिरिवच्छणदियावत्त कामगम-पीइगम-मणोगम-विमल-सव्वओभद्द-सरिस-णामोजेहिं विमाणेहिं) पे दस वैमानिक देवेद्र अपने २ पालक, १ पुष्पक २ सौमनस, 3 श्रीवत्स, ६, भाशु ७, ससार ८, मानत ६, प्रात १०, ०० ११, मने અચુત ૧૨, આ દેવલોક છે આ સૌધર્માદિ, માનિક દેવતાઓના રહે વાના સ્થાન છે તે દેવલોક ૧ર છે તેમની કલ્પ સ ના છે તેમના સ્વામી ૧૦ છે આ કપમાં જે ઉત્પન્ન થાય છે તે વૈમાનિક અથવા ૮૫વામી દેવ ४पाय छ (पहिद्रा) मई उप प्रात यता (देवा) मा मानिः हेवेन्द्र ने (जिण-दसणु-स्सुया-मण-जनिय-हासा) जिनेन्द्रनाशन भाटे मुतापूर्व मागभनयी मति मान यथे। छ (पालग-पुफिग-सोमणस-सिरिपच्छ-णदिया वत्त-कागगम-पीइगम-विमल-सव्यओभद्द-सरिसणामवेजेहिं निमाणेहिं) ते ६॥