Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पोषयषिणो-टीका स ट यानशालियस्य पल व्यापृनाऽऽदेशसपादनम् ३७१ आणाए विणएण वयण पडिसुणेड, पडिसुणित्ता जेणेव जाणसाला तेणेव उवागच्छड, उवागच्छित्ता जाणाइ पञ्चुवेक्खेड, पञ्चुवेखित्ता जाणाड संपमजेड,सपमजित्ता जाणाइ सवट्टेड,सवद्वित्ता जाणाडणीणेड, णीणिता जाणाण से पवीणेड, पवीणिताजाणाड प्रतिशृणोति स्वीकरोति, प्रतिश्रुय आज्ञावचन म्यात्य यौव यानगाला तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य 'जाणाइ पच्चुवेरखेट' यानानि प्रयुपेक्षते सम्यक प-यति, प्रत्युपेक्ष्य दृष्ट्वा 'जाणार सपमज्जेट' यानानि सम्प्रमार्जयति-निगतरजासि उस्ते, मम्प्रमार्य, 'जाणार सब?' यानानि मर्तयति-स्फस्मिन् म्याने स्थापयति, 'संवहितावर्त्य 'जाणाई णीणे' यानानि नयति-गालातो वहि फरोति, नावा 'जाणाण' यानाना 'दसे' दूप्याणि-आच्छादनवस्त्राणि 'पवीणेद' प्रविनयति अपसारयति, प्रविनाय-अपसार्य, आनाको सुनकर (आणाए विणएण वयण) उस आज्ञापचन को निनयपूर्वक (पडिसुणे') स्वीकार किया, (पडिमुणित्ता) स्वाकार करके फिर वह (जेणेव जाणसाला) जहा यानगाला या (तेणेव उवागच्छद) वहाँ पहुँचा, (उवागच्छित्ता) पहुँचकर (जाणार पाचुक्खेट) उसने वहा पहिले रथ आदि याना को अच्छी तरह से देसा । (पच्चुवेक्खित्ता) देसकर (जाणाइ सपमजेट) उसने उसे अच्छी तरह झाड-झुड कर साफ किया। (सपमजिता जाणाई सबट्टेइ) साफ करने के बाद उसने फिर जितने चाहिये थे उतने यान एक जगह एकत्रित किये । (सवहिता) दकह करने के बाद (जाणाद णीणे.) वहा से उसने उन सब को बाहिर निकाला। (णीणित्ता) पाहिर पानी मा सालजीन ( आणाए विणएण घयण) ते माज्ञापयननी विनयपूर्व (पडिसुणेइ ) वीर यो (पडिसणित्ता) स्वी४२ गने पछी ते (जेणेव जाणसारा) या यानाला ती (तेणेच उवागन्छइ) त्या पाय! (याग पित्ता) पहायाने ( जाणाइ पचवेस्खइ) तो त्या पडसा २२ २॥ यानाने माग गते नया ( पन्चुवेक्सित्ता ) लेधन (जाणाइ सपमज्जेइ) त तण मा शत पानी-लूडी भाई उर्या ( सपमज्जिता जाणाइ सबट्टेइ) 0 0 લીધા પછી તેણે જેટલા જોઈતા હતા તેટલા યાન (વાહન) એક જગાએ मे० या (सवट्टिता) 25.1 श सीधा पछी (जाणाइ णोणेइ) त्याथी तेथे ये धाने मा२ दया (णीणित्ता) गडा२ डोटीन (जाणाण दूसे