Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
__ पीयूषयपिणी टीका सू २८ कूणिकस्य न्यायामादिविधि
समाणे तेल्लचम्मसि पडिपुण्ण-पाणि-पाय-सुउमाल-कोमल-तलेहि पुरिसेहि छेएहि ढक्वेहि पट्टेहि कुसलेहि मेहाबीहिं निउण'अभिगेहि' अभ्यने -स्नहनै ‘अभिगिए ममाणे ' अभ्यङ्गित -कताम्यङ्ग सन् 'तेलचम्मसि' तेलचर्मणा, अन तृतीयार्थे सममी, तेलानुलिपारीरस्य मनसाधनम्प चर्म 'तैलचर्म' टयुच्यते, 'मवाहिए समाणे माहित मन--टत्युत्तग्ण अन्वय , कै
वाहित दयाह-पुरिमेहिं' पुम्प -अङ्गम्बाहननियुक्तमृत्ये , त कीटजग्ल्यिाह'पडिपुण्ण पाणिपाय-मुउमाल-कोमल-तळेहि प्रतिपूर्ण-पाणिपाद-मुरुमार-कोमलतलै -प्रनिपूर्णानाम् अविकलाना, पाणिपाटाना सुकुमाग्कोमलगनि अतिमृदुलानि तानि येपा ते तथा ते , 'एहिं । ठेकै =मनकलानिपुणे , 'दखेहि ' दक्षे =अविलम्बितकारिभि , मर्दनकार्ये प्रेमरे, 'पढेहि' प्रष्ठे, 'कुसलेहिं' कुशलै =मर्दनविपिने, 'मेहावीहिं' मेधानिभि -प्रतिभागारिभि , 'निउण-सिप्पो-चगएहिं निपुणशिल्पोपगते, ज्वटना से (अभिगिए समाणे) शरीर का खून मालिश करबाट । *(तेलचम्मसि) तैलचर्मसे मालिम कग्नवाडे (पुरिसेहिं) पुस्पा न कि जिनक (पडिपुण्ण-पाणि-पाय-सुरमाल-तले) हाय और पैर क तल्वे अधिक मुमार थे, (एहिं) मन करनका क्रा में जो अधिक निपुण थे, ( दक्खेहिं ) सालिये जो दस का क जाननेवाला में सर्वप्रथम गिन जाते थे, (पढेहिं) मर्दन कग्न का विधि क्या है और किस ढग से किस समय कैसा मन करना चानिये-टयाटि नाता म जो विशेष पटु थ, ( मेहावीहि ) नवान २ रीति मे
* यहा तृताया क अर्थ म सममा विभक्ति हुइ है, तैल से चिक्न हुए शरीर को मर्दन करने का साधनरूप चर्म नैचर्म क्लाता है। देवापाडोय, अव ताथी, तथा (अभिगेहि) पटनाथी ( अभिगिए समाणे ) शनी मृ५ मालिश उरावी (तेल्चम्मसि) तेलयमयी मालिश ७२पापासा (पुग्सेिहिं) ५३५ो ३२ (पडिपुण्ण-पाणि-पाय-सुउमाल-तलेहिं) डाथ तथा पगना त म सुधभार मा हता, (हिं) मन ४२पानी अामा रे म नि हता, (खेहि) माथी २ मा ४ाना angrभा सर्वप्रथम गाता हता, ( पटेहिं ) भहन ४२वानी विधि शु मने दी રીતે કેવા સમયે કેમ મર્દન કરવું જોઈએ-ઇત્યાદિ વાતેમા જે વિશેષ शण ता, (मेहानीहिं) न नवी ते २ मई पानी साना मावि
[૨] અહી તૃતીયાના અર્થમાં મસમી વિભક્તિ થઈ છે તેલથી ચીણા થયેલ શરીરને મર્દન કરવાનું સાધનરૂપ ચર્મ તેલચર્મ કહેવાય છે