Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पीयूपपषिणो-टीका सू ४८ कूणिस्य पनादि धारणम वसाणे पम्हल-सुकुमाल-गध-कासाडय-लहियगे सरस-सुरहिगोसीम-चदणा-णुलित्त-गते अहय-सुमहग्ध-दूस-रयर्ण-सुसवुए रक्षाबन्धनादीना आतै =बहुविधैर्युक्त 'महागग-पर-मज्जगा-वसाणे' कयाणकप्रवरमजनावसाने, स्नानानन्तरमित्यर्थ, 'पम्हल-मुकुमाठ-गर-कासाटय-लहियगे' पदमल-सुकुमार--न्धकापायिका-रूमिताऽङ्ग , पश्मलाउथितम मतन्तुरामृहयुक्ता, सा च सुकुमारा-मुकोमला गवती च एतादृशा या कापायिका-कपायरक्तगाटिका-अङ्गप्रोन्छनिका तया रूक्षिताङ्ग -निर्जलीकृतशरीर , 'सरस-सुरहि-गामीस-चटणा-णुलितगत्ते' सरस-सुरभि-गोगीर्ष-चन्दना-जुलिम-गान , तत्र-गोगार्पच दन-गोगार्पनाम्ना प्रसिद्ध चन्दनम् । 'अहय-मुमहग्य-दूस-रयण-मुसए' अहत--सुमहा य--प्य-रत्न-सुम्वृत --अहतम्-अखण्टित-कीटमूपिकादिभिरकर्तित नृतनमिति भार , मुमहामहुमूल्य यद् दूध्यरत्न-अधानवस्त्र तेन सु-वृत्त =सुष्टु आच्छाग्नि , परित्तनतनबहुमू यवत्र दत्यर्थ । दोष निवारणार्थ रक्षावधनादिका के अनेक प्रकारा से युक्त उन गजा न (कल्लाणग-पवरमजणा-वसाने) जब उस कल्याणकारक श्रेष्ठ स्नान का ममामि हो चुका तर (पम्हल सुकुमाल-गध-कासाइय-लहियगे) पक्ष्मल-उठे हुए कोमल ततु वाले सुकुमार ण्व सुगधित कपाय रग की तोलिया से अपने समस्त गरीर को पांडा । पश्चात् (सरस-सुरहिगोसीसचदणा-णुलित्त-गते) समस्त गरार पर सग्म मुगधित गोगापचन्न का लेप किया । (अहय-मुमहग्ध-दूसरयण-सुसवुए) जन ल्प अच्छी तरह से शुष्क हो चुका तब अहंत-कीटभूपक आदि से नहीं काट गये, नवीन-ऐसे युटुमूल्य प्रधान पत्र को उन्होंने शरीर पर धारण किया । (सुइ-माला-वण्णग-विलेवणे) पश्चात् शुद्धषुप्पा की माला बहुविहेहि) ते १५सरे विविध प्रा२ना मने तु। 4-टिप-निपासाथ रक्षामना मने प्रारयुत ते शलणे (कल्याणग-पर-मजणावसाने) ल्यारे ते ४८याए १२४ श्रे४ नाननी भाति युती त्यारे (पम्हल सुकुमाल-गधकासाइय लहियगे) पदम-64-मी गावेसा सुवामा सुतरामा કમળ તેમજ સુગધિત કપાય રગના ટુવાલ વડે પિતાના મસ્ત શરીરને दुई नाभ्यु पछी (सरस-सुरहि गोसीस चन्णा णुलित्त गत्ते) समस्त १२ ५२ सरस तेभर सुगधित गाशीष यहनना खेप च्य। (जहय मुमहग्य दूसरयण सुसवुए) न्यारे वेप सारी मुडाई गये! त्या महत-जीभृ५४ (वास કે ઉંદર) આદિથી કપાયેલા નહિ એવા, નવીન-એવા બકિંમતી વસ્ત્રોને तभर N२ ७५२ धारण र्या (सुइ-माला-वष्णग-विलेनणे) पछी शुद्ध पुप्पानी