Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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সীবশিক
कणग-वण्णा, जे य गहा जोइसमि चारं चरंति केऊ यगइरइया अट्ठावीसविहा य णक्खत्तदेवगणा णाणा संठाण-संठियाओ य चार चरन्ति--उक्तातिरिक्ता ये ग्रहा व्यानि योनिचक्रे-चकटवमाममा व्यानि मण्डले भ्रमण कुर्नन्ति । बहुबाद बहुवचनम् । 'केऊ य गहरडया' केतपथ गतिचिता - केतवा-जलके वादय , किम्भृता । अनाऽऽह-गतिरचिता -मनु लोकापेक्षया गतिमत । 'अट्ठावीसविहा य णक्खत्त देव गणा' अष्टाविंगतिविपाथ नक्षपदवगगा -अष्टापिंग तिनक्षत्रदेवता । अम्-प्रसझादन्येपामपि ज्योतिफदेवाना माया उच्यन्ते-प्योतिष्कदेवा पञ्चविधा भवन्ति, सूर्या १, चन्द्रमस २, महा ३, नक्षत्राणि ४, प्रकीर्णतारकाच ५, तत्र द्वौ सूर्यो जम्बूद्वीपे, लपणे चत्वार , धातकीसण्डे द्वारा, कालोधौ द्विचवारिंशत् , पुष्कराढ़े द्विसप्तति -इयेव मनुष्यलोके द्वारिंगटधिक गत सूर्या सन्ति, चन्द्रमसोऽपि जो ग्रह ज्योतिश्चक में-चक की तरह प्रतिभासमान इस ज्योतिर्मण्डलमे-भ्रमण करते है वे ( केऊ य गइरइया) जलकेतु आदि केतुग्रह, जो कि मनुष्यलोक की अपेक्षा हा सदा गतिविशिष्ट है। अथात् यह समस्त ज्योतिश्चक इस मनुष्यलोक रूप ढाई द्वीप म हो गति विशिष्ट है, अन्यत्र नहीं । (अट्ठावीसविहा य णक्खत्तदेवगणा) नया जो अट्ठाइस (२८) प्रकार के नक्षत्र जाति के देवता है।
यहाँ पर प्रसगवश अन्य ज्योतिषी देवों की भी या कहते हैं। ज्योतिषी देव पाँच प्रकार के है-सूर्य १, चन्द्रमा २, ग्रह ३, नक्षन ४, और प्रकीर्ण तारा ५। इन सबों में प्रत्येक की सरया इस प्रकार है-जम्बूद्वीप मे दो सूर्य हे, लवण समुद्र मे चार सूर्य हैं, धातकीखण्ड मे बारह सूर्य है, कालोदधि मे बयालीस सूर्य हे और पुष्कराई मे बहत्तर __सूर्य है। इस प्रकार मनुष्यलोक में सूर्य की रया एक सौ बत्तीस है। चन्द्रमा की रग्या
વર્ણવેલાથી બીજા જે ગ્રહો જ્યોતિશ્ચકમા-ચકની પેલે પ્રતિભાસિત આ જ્યોતિ में सभा-प्रभार रेत (केऊ य गइरइया) 13तु मातुश्र ने मनुष्य લોકની અપેક્ષા જ હમેશા ગતિ-વિશિષ્ટ છે અથા-આ સમસ્ત વિશ્ચક્ર मा भनुष्या३५ सढी दीपमा गतिविशिष्ट छ, -मीर नहि (अट्ठा वीसविहा य णक्सत्त देवगणा) तथा २ २८ जान नक्षत्र जतिना पता छ
અહી પ્રસ ગવશ બીજા જ્યોતિષી દેવોની પણ સ ખ્યા કહે છે જ્ય તિથી દેવ પાચ પ્રકારના છે સૂર્ય ૧ ચ દ્રમાં ૨ ગ્રહ ૩ નક્ષત્ર ૪ તથા પ્રકીર્ણ તારા ૫ આ બધામાં પ્રત્યેકની સ ખ્યા આ પ્રકારે છે–જ બૂદ્વીપમાં ૨ સૂર્ય છે લવણ સમુદ્રમાં ચાર સૂર્ય છે ધાતકીખ ડમાં ૧૨ સૂર્ય છે કાલોદધિમા ૪૨ સૂર્ય છે તથા પુષ્કરાદ્ધમાં ૭ર સૂર્ય છે આ પ્રકારે મનુષ્યલોકમાં