Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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औपपाति गोरा सेयासुभ-वण्ण-गंध-फासा उत्तमवेउविणाविविह-वत्थ-गंध. मल्ल-धारी महिड्ढिया महज्जुइया जाव पंजलिउडा पज्जुवासंति ॥ सू०३७॥ पद्म पक्ष्म गौरा -पाकिजकपद् गौरवर्गा । 'सेया' श्वेता शुभकाति-गालिन । 'सुभ वण्ण-गध फासा' शुभ-वर्ण-गध-स्पर्गा । 'उत्तम-वेउन्धिणो' उत्तम विगविग == उत्तमविकुणाकाग्णि 'विविह-वत्य-गध मल्ल-धारी' विविध-वन-गध-मान्य-धारिण 'महिड्ढिया' महद्धिका -महासम्पत्तिशालिन । 'महज्जुइया' महायुतिका -अतिशय द्युतिम त । 'जाव पजलिउडा पज्जुवासति' या प्रामलिपुटा पर्युपासते यावच्छन्दात् पूर्ववत् त्रिकृय , आदक्षिणप्रदक्षिग-बन्दन-नमनादय सुध्यते, प्राञ्जलिपुटा =रद्धाञ्जलय पर्युपासते-समतादुपासना कुर्वते ॥ सू०३७ ॥ मस्तक की केगपक्ति मुकुट की काति से दीत हो रही थी। (रत्ताभा) इनकी काति अरुण-लाल थी, (पउम-पम्ह-गोरा) पर इनका शरीर कमल के कगरा के समान गोर वर्णवाला था। इसलिये (सेया) ये शुभ्रक्राति से शोभित थे। (मुभ-गध-वण्णफासा) इनके शरीर के गध, वर्ण और स्पर्ण शुभ थे। (उत्तमवेउन्विणो) ये उत्तम क्रिय शरीर करनेवाले थे। (विविह-वत्थ-गध-मल-धारी) अनेक प्रकार के उत्तमोत्तम वस्त्रों को ये धारण किये हुए थे। गले मे इनके सुगधित पुप्पों की माला सुशोभित हो रही थी। तथा ये (महिड्ढिया) महद्धिक थे। एर (महज्जुइया) महाधुतिधारा थे। (जाव पजलिउडा पज्जुवासति) ये पूर्ववर्णित असुरकुमारों की तरह तीन बार अजलिपूर्वक सविधि वदना कर प्रभु की सेवा करने लगे ॥ सू० ३७॥ भ31 प्रशित थई २हा उता (मउड-दित्त-सिरया) भन्तनी शपति भुटनी तिथी पी ती ती (रत्ताभा) भनी जति २-मास ती (पउम-पम्ह-गोरा) पशु तमना शरीर उभरना श 24 गीर व नाडा माथी (सेया) तेरा शुभ्रातिथी शामत ता (सुभ-गध-वण्ण-फासा) अभना शरीरना , वर्ष भने २५श शुल ता (उत्तमवेग्विणो) तेगा उत्तम बेठिय-२ पा२॥ ४२वापत (विविह-वत्थ-गध-मल्ल-चारी) मन પ્રકારના ઉત્તમોત્તમ વસ્ત્રો તેમણે ધારણ કર્યા હતા, તેમના ગળામાં સુગંધિત पुष्पानी भाशी २४ी ती तथा तेसो (महिड्डिया) भद्धि उता भव (महज्जुइया) महाधुतिधारी ता (जाव पजलिउडा पज्जुवासति), तेमा આદિ ૧૦ વિમાન હોય છે મૃગ મહિલ, આદિના અનુક્રમે તેઓના મુકુ ટમાં ચિહ્નો હોય છે