Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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રૂ૪૮
औपातिकमरे जणबोले इ वाजणकलकले ड वाजणुम्मी ड वाजणुकलिया इ वा जणसपिणवाए डवा, वहजणो अण्णमण्णस्त एवमाडक्खइ, एवं भासड, एव पण्णवेइ, एवं परूवेड, एव खलु देवाणुप्पिया । वोले इ वा ' जनानामव्यक्तो ध्वनिर्वा, 'जणाटकले ४ वा' जनकल्कलो-जनाना व्यक्तवर्गामको नाट 'जणुम्मी इ पा' जनोम्मि मनानाध-तरगवजनानामुपर्युपरिसमा. गमनम् , 'जणुकलिया इरा' जनोकलिका वा-जनाना लघुतर समुदाय , 'जणसण्णिवाए इ वा जनसनिपात -जनाना सर्परूपेण ममिलन भवति, तत्र-'बहुजणो' बहुजन 'अण्णमण्णस्स एवमाइक्रवड' अयोऽयमेवमाचष्ट--कोऽपर वति सामायरूपेण, 'एव भासइ' एव भापते-चक्ष्यमागप्रकारेण विशेषत कथयति 'एव पण्णवेइ' प्रज्ञापयति-अदृष्ट सन् कथयति 'एच परूवेइ' एव प्रापयति-पृष्ट सन् कथयति, मनुष्यों का एकत्र जमघट होने लगा। (जणवोले इवा) मनुष्यों की अव्यक्तध्वनि होने लगी। (जणफलकले इवा) प्रगट रूप मे कहीं २ मनुष्यों का कलकल अथात स्पष्ट ध्वनि सुनाई देने लगी। (जणुम्मी इ वा) समुद्र के तरग समान ऊपर के ऊपर लोगों के झुड आने लगे। कहीं २ पर (जणुकलिया इ वा) सामान्य रूप से जनसमुदाय एकत्रित हुआ। (जणसण्णिवाए इ वा) कहीं २ पर मनुष्यों का इतना अधिक सघट्ट हुआ कि वे सब परस्पर में एक दूसरे से सघृष्ट होने लगे। इन सब मे (बहजणो) अनेक मनुष्य (अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ) परस्पर मे एक दूसरे से इस प्रकार सामा यरूप में कहने लगे, (एव भासइ) कोई २ इस प्रकार विशेषरूप से कहने लगे, (एव पण्णवेइ) काई ७२५५ १२या (जणवृहे इ वा) मेड भाणुस मानने पूछा सायो-मथवा भाष्णु सानुगु मेत्र थवा सायु (जणयोले इ वा) सोनी भव्यत पनि था सागी (जणकलकले इ वा) ३ या ४या मनुष्यानी ४८ अर्थात २५४ पनि समाप as (जणुम्मी इ वा) समुद्रना माननी पे 6५२॥ 6५२ आना टोणा या साया (जणुस्कलिया इ वा) सामान्य३३ न समुदाय त्रित थयो (जणसण्णिपाए इ वा) स्थाने मनुष्य सेटमा એકઠા થયા છે તે બધા પરસ્પરમાં એક બીજાની સાથે અથડાવા લાગ્યા या अथामा (बहुजणो) मने मनुष्य (अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ) ५२२५२भा मे मीनन सा प्रारे सामान्य३५मा उडा साया (एव भासइ) आध र मा प्रकारे विशेष३५मा । दाया, (एव पण्णवेइ) 35 ५७या