Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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___ पोयूषषिणो-टीका र ४० कूणिस्य पलव्याप्तं प्रत्यादेश ३६९ करेहि य कारवेहि य, करेत्ता य कारवेत्ता य एयमाणत्तिय पञ्चप्पिणाहि. णिजाहिस्सामि समणं भगव महावीर अभिवंदिउं ॥ स ४०॥ लोदय' इति दशीय गट, गोमयादिना भूमौ यद् लेपन सेटिकादिना कुड्यादिपु च यद् धरल्न तद् 'लाउल्लोइय तेन महिताम् मुमहिनाम्, 'गासीस-सरम-रत्तचढणजाव-गधवहिभूय करेहि य' गोगार्प-मरम-रक्तचन्दन-यापद्-गधवतिभूता कुरु-गोगा = चन्दनविशर्षे सम्मरक्तचन्दनन याद गरतिभूता-समुपचितगन्धद्रव्यरूपा कुरु, 'कारवेहि य' कारय च, अन्यानपि तथा कर्तुं प्रेरय, 'फरेत्ताय कारवेत्ता य' कृथा च कारयिया च 'एयमाणत्तिय पचप्पिणाहि तामाज्ञा प्रयर्पय, आनापिताऽथान सम्पाद्य मह्य कथय, 'णिजाहिस्सामि समण भगव महावी अभिवदिउ' नियास्यामि निर्गमिष्यामि श्रमण भगत महावीग्मभिनन्दितुम् ॥ सु ४० ॥
और भातों को खडा से पुतगाओ, (गोसीस-सरस रत्तचदा जाव-गधटि-भूय) गोगीर्षचदन विशेप, एव परस रक्तचढन से समस्त नगर को सुगधित बनवाओ ताकि वह मुगधपुज जैसा माहम पडन लगे। (करेहि य कारवेहि य) यह सर काम स्वय कगे तथा दूमरा को भा इस तरह करन के लिये प्रेरित करो। (करेत्ता य कारवेत्ता य) करके एव करवा करके(एयमाणत्तिय पञ्चप्पिणाहि) इस मेग आना को पुन मुझे प्रयर्पित करो-आपकी आजानुसार सर काम हो चुके है इसकी मुये सरर हो ! (मिजाहिस्सामि समण भगव महावीर अभिवदिउ ) वाद में मे श्रमण भगवान महावीर की वन्दना के लिये निकला ॥ मु ४०॥
भीनने सी पावो भने नीताने माथी घोणावा (गोसीस-सरस-रत्तचदण जार-धवट्टि-भूय) शशीर्ष-यन्तन विशेष तेभर ५२२५ २४तय हनथा समस्त नगरने सुगधित मनाया था त भुगधु वीसावा सागे (करेहि य कारवेहि च) मा मधु डाम तते । तया मीलने पशु मेवी ते ' ४२१। प्रेरित ७२, (करेत्ता य कारवेत्ता य) ने तमा ४२वीन (एयमाणत्तिय पन्चप्पिणाहि) मा भारी मासाने पाछी भने प्रत्यापित 32-241पनी मासानु सार मधु जाम 25 यूटयु मेनी भने म हो (णिज्नाहिम्सामि समण भगर महावीर अभिवदिउ) मा ९ श्रम लगवान महावीरनी पहना भाटे नालीश (सू ४०)