Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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औषपातिकवने भीम सगामियाओज्ज आभिसेक्क हत्थिरयण पडिकप्पेड, पडिकप्पित्ता हय - गय-रह - पवरजोह-कलियं चाउरंगिणी सेण सण्णाहेइ. जेणेव बलवाउए तेणेप उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एयमाणत्तियं पञ्चप्पिणड ॥ सू० ४२ ।। मन पवनजयिवेग-गया मन पपनाधिकवेगयुक्त, 'भीम' भयङ्करम् , ' सगामियाओजं' सानामिकाऽऽयोज्यम् ग्रिाम एव सामामिक तस्मिन् आयो यम्=आयोजनीय-ग्राम योग्यमि यर्थ , आभिसेव हत्यिरयण' आभिपेक्य हस्तिरत्नम् - अभिषेकाह हस्तिश्रेष्ठम , 'पडिकप्पड' परिकल्पयति, 'पडिकप्पित्ता' परिस्न्य, 'हय-गय-रहपवरजोर-कलिय' हय-गज-रथ-प्रवरयोध-कलिता-हयैर्गजै रथे प्रवरयोधै महारथिमि र्युक्ताम्, 'चाउरगिणिं सेण' चतुरगिणी सेनाम् चतुरगवती सेनाम्, 'सण्णाहेड' सना हयति, 'जेणेव वलवाउए । यत्र पल्ल्याप्त --सेनापति , 'तेणेव उवागच्छड' तत्रैवोपागच्छति, ' उवागच्छित्ता' उपागय, 'एयमागत्तिय, एतामामिकाम्-सेना पतेराज्ञाम् 'पञ्चप्पिणइ' प्र यर्पयति-तीयामाज्ञा सम्पाय पश्चानिवेदयति, भवदाज्ञानुसारेण सर्व सपादितमस्माभिरिति ॥ ४२॥
हस्तिश्रेष्टम, 'पमिसेघ हत्यिस्यामिक तस्मिन् ।
कि मानो महामेधकी गर्जना हो रहा है । (मण-पवण-जइण-वेग) इसकी गति मन और परन के वेग को जीतने वाला था, (भीम) देसने मे यह रडा भयकर जैसा लगता था। (सगामियाओज्ज) इस के ऊपर जितना भी सामग्रिया रग्बन म आइ थीं वे सब सग्राम के योग्य था । (आभिसेक हत्थिरयण) इस प्रकार इस पटहस्ति को (पडिकप्पेइ) उन निपुण मतियाले पुरुषों से सजवाया, (पडिकप्पित्ता) मजवाने के बाद फिर उस हाथी के अधिकारी ने उन निपुण पुरुषो से (हय-गय-रह-पवरजोह-कलिय चाउरगिणि
महाभधनी गईना थाय छ (मण-पवण-जइण-वेग) तनी गति भन । तथा । पवनना गने ते मेवी ती (भीम) नेपामा से मई सय२ वो
सागतो तो (सगामियाओज) तेना ५२ बीये सामग्रीमा २१पामा "सावी ती ते आधी सामने योग्य ती (आभिसेक्क हत्थिरयण) । प्रकारे से पस्तिने (पडिकप्पेइ) ते निपुर्ण भुद्धिवासा पुषोये सबये! तो (पडिकप्पित्ता) तैयार ने लीधा पछी त हाथीना साहारी व पापोवा (हय-गय रह-पवर-जोहकलिय चाउरगिणि सेण सण्णाहेछ) घाडी,