Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पोयूपवपिणी टोका स ४२ वस्त्यादिसजनम्
३७५ सज्ज सच्छत्त सज्झय सघट सपडाग पचामेलय-परिमडियाभिरामं ओसारिय-जमल-जुयल-घट विजुपिणद्ध व कालमेह
उप्पाइयपब्वय व चंकमत मत्त गुलगुलत मण-पवण-जडण-वेग मन्त्रम्-छत्रयुक्तम् , 'सज्झय' सध्वजम्-ध्वजयुक्तम् ‘सपट' सघण्टम्-घण्टाभूपितोभयपार्श्वम्, 'पचामेलय-परिमडिया-भिराम' पञ्चामेलक-परिमण्डिताऽभिरामम्पञ्चभिरामेलकै =पञ्चवर्णाभि पुष्पमालामि परिमण्डितम्-अतएव अभिराम-मुन्दर यत्तथा तत्, 'ओसारिय-जमल-जुयल- पट' असारित-यमल-युगल-घण्टम्-अवसारितम्= अधोऽवलम्बित यमल-मम युगल-द्विक घण्टयोर्यत्र तत् तथा तत, 'विज्जुपिणद्धं विद्युपिनद्रम्-विद्युद्वियोतिन 'कालमेह व कालमेघमिन-गजस्य कृष्णवर्णवात उच्चतया च मेघोपमा, 'उप्पाइय-पचय व' औपातिकपर्वतमिव-अस्मान्नृतनसमुद्भूतपर्वतमिव, 'चकमत' चक्रम्यमाणम्-अतिगयेन काम्यत-स्वाभाविकपर्वतो हि न चक्रम्यते इति भार ! 'गुलगुल्त' ध्वनत्-महामघवन ध्वनि कुर्वत्-व्यय , ' मण-पवण-जटण-वेग' (सम्झय) घजासहित था (सरट) घटाओं से इसके उभयपार्श्व युक्त थे। (पचामेलयपरिमडिया-भिराम) पाचवर्ण के पुष्पमाला पहनान क कारण यह अयन्त मुन्टर लगता या । (ओसारिय-जमल-जुयल-घट) नाचे तक एक ही साथ लटकते हुए दो घटा से यह गोभित था । (विज्जुपिणद्ध) इस पर जो भी आभग्ग सजाये गये ये वे बिजला के समान चमकते थे, अत यह गजराज (कालमेह व) कृष्णवर्ण होन से काला मेघ के जसा जात होता था । (चकमत उप्पाइयपव्यय ब) चलते समय यह औपातिक पर्वत के समान दिखायी देता था । (गुलगुलतं) जब यह चिंघाटता था तो ऐसा प्रतीत होता
नाए थे युद्ध भाटे सन्नमा छ (सच्छत्त) ये छत्रसहित तो (सज्झय) पतसहित डो (सघट) धाम मन्ने मान्नु तरती ती (पचामेलय-परिमडिया-भिराम) पाय वर्णनी पुष्पमाला पडेशपाथी मे सुह२ सागतो तो (ओसारिय-जमल-जुयल-घट) नीचे सुधी से४ साथै सरता मे घटासाथी त शामत तो (विज्जुपिणद्व) तेना ५२ ० ७ मामर સજાએલા હતા તે વીજળીના જેવા ચમકતા હતા આથી આ ગજરાજ (कालमेह व) कृष्णपण पाथी ४८ मेघना तो तो (चकमत उप्पा इयपव्यय. व) यालती मते से मौत्पाति तनाव माता डता (गुलगुलत) यारे ते रातो तो , त्या सम प्रतीत यतु तु 3 nd