Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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औपतिकसने विमल-सव्वओभद-सरिसणामधेन्जेहिं त्रिमाणेहि ओडण्णा वंदगा जिणिद मिग-महिस-बराह-छगल-ददुर-हय-गयवइ-भुयग-खग्गउसभंकनी डिम-पागडिय-चिध-मउडा पसिढिल-बरमउड - तिरीडकादिसर्वतोभद्रातनामकै, तथा तसदृशनामके -पूर्णभद्र-सुभद्रादिनामकेश्चान्यैर्बिमानेरन्येऽपि देवा 'ओइण्णा' अनता =भुवमागता । 'पदगा जिगिंद' वरका जिनन्द्रस्य -जिनेन्द्र वन्दितुकामा इत्यर्थ । 'मिग महिस वराह उगल दरम्य गयवा-भुयग खग्ग उसभक रिडिम पागडिय चिंध मउडा' मृग-महिप-चराह उगल हय गजपनि मुजगखड्ग-पभाऽइ-पिडिमप्रकटित चिह्नमुकुटा , मगमहिपाति-पभाता अहा-चिनानि विडिमेषु-विस्तीर्णभागेषु येपा मुकुटाना तानि मृगमहिपपराह-गल-दर्दुरहयगजपतिभुजगग्वड्गरूपभाङ्कमिडिमानि, तानि अतएव प्रकटितचिह्नानि रत्नागिनीया प्रकाशितचिदयुक्तानि मुस्था ४ नद्यावर्त, ५ कामगम, ६ प्रीतिगम, ७ मनोगम, ८ विमल, ९ सर्वतोभद्र १० इन नामवाले विमानों से और पूर्वोक्त सिमाना से अतिरिक्त पूर्णभद्र सुभद्र आदि विमानों से दश देवेद्रों से भिन्न अय वैमानिक देव (ओइण्णा) पृथ्वी पर अवतरित हुए-आये, अर्थात्इन पूर्वोक्त नामवाले विमानों द्वारा दस देवेन्द्र, तथा और भी अन्य देव अपने अपने विमानों द्वारा इस भूमण्डल पर अवतीर्ण हुए-उतरे । क्यों कि ये सब (चदगा जिणिंद) जिनेन्द्र की वदना करने की कामना वाले थे। (मिग-महिस-वराह-छगल-दरहयगयवड-भुयग-खग्ग-उसभक-विडिम-पागडिय-चिंध-मउडा) इनक मुकु टोके विडिमो-विस्तीर्ण भागों में क्रमश मृग, महिप, वराह, अगल-बकरा, द?र-मेढक, વિમાનિક દેવેન્દ્રો પોતપોતાના પાલક ૧, પુષ્પક ૨, સોમનસ ૩, શ્રીવત્ય ૪, ન દ્યાવર્ત પ, કામગમ ૬, પ્રીતિગમ ૭, મને ગમ ૮, વિમલ ૯, સર્વતેષક ૧૦, આ નામવાળા વિમાનથી, તથા પૂર્વોકત વિમાનોથી અતિરિકત પૂર્ણભદ્ર सुला मा विभानाथी ४० देवेन्द्रीथ लिन्न मीत वैमानि (ओइण्णा ) પૃથ્વી પર આવ્યા અથાત્ આ પૂર્વોક્ત-નામવાળા વિમાને દ્વારા તે દેવેન્દ્ર તથા બીજા પણ દેવ પોતપોતાના વિમાન દ્વારા આ ભૂમ ડલ પર ઉતરી
साच्या भई मे धा (वदगा जिणिंद) मिनेन्द्रनी पहनी ४२पानी मिना प ता (मिग-महिस-वराह-जंगल-ददुर-हय-गयवइ भुयग-खग-उसभक
दिशा पागडिय चिंध मउडा) तमना भुटाना विउिभा-विस्ती भागाभा भश सामालिय, , छगम-१६२, ६६२-भै ४ [at], 4-4131, In