Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पीयूषषषिणो-टीधा सू ३० आगन्तरतपोभदवर्णनम
રરૂ૭ मूलम्-से कि तं अभितरए तवे , अभितरए तवे छविहे पण्णत्ते, त जहा-पायच्छिते, रविणए,३ वेयावच्चं ४ सज्झाओ, ५ झाण, ६ विउसग्गो। णाय=निरवद्यम पाठफलकायासस्तारकम उपसम्पय विहरति । ' से त विवित्त-सयणासण-सेवणया' सेवा निरिक्त-गायना-सन-सेवनता। 'मे त पढिसलीणया' सैपा प्रतिसलीनता, 'सेत पाहिरए तवे' तटिट वाद्य तप ॥ म० ३० ॥
टीका अथाभ्य तर तप प्रोच्यते-'मे कि त अम्भितरए तवे" अथ किं तद् आभ्यन्तर तप , उत्तरमाह-अभितरए तो उबिहे पण्णत्ते' आभ्यतर तप पड्किय प्रनतम् , 'त जहा' तद्यथा-१ 'पायच्छित्त' प्रायश्चित्तम् , २-'विगए' विनय , ३ 'वेयावच्च' वैयावृत्यम्, ४-'सज्झाओ' स्वाध्याय , ५-'झाण' यानम्, ६"विउसग्गो' व्युसर्ग इति । तर प्रायश्चित्तमाह-'से कि त पायच्छित्ते' अथ किं गण्या एव मस्तारक अगाकार कर विचरता है, (मे त विवित्त-सयणा-सण-सेवणया) यह विविक्तगयनासनसेवनता है। (सेत पडिसलीणया) इस प्रकार यह प्रतिमलीनता है । (से त वाहिरए तवे) इस प्रकार यह रह प्रकार के बाह्य तप के भेद-प्रभेट कहे गये हैं। सू० ३०॥
अम आभ्यन्तर तप का सूनकार वर्णन करते हैं-' से कितअभितरए तवे ?" इत्यादि।
(से किं त अम्भितरए तवे ?) आभ्यन्तर तप क्या है-कितने प्रकार ___ का है ? (अम्भितरए तवे छबिहे पण्णत्ते) आभ्य तर तप रह प्रकार का
हैं, (त जहा) वह इस प्रकार से है, (पायच्छित्त, विणए, वेयावच्च, सज्झाओ, झाण, विउसग्गो) १ प्रायश्चित्त, २ विनय, ३ वैयाऋत्य, ४ स्वा याय, ५ ध्यान और ६ पा8, ५४, शय्या तेभर सन्ता२४ २५ गा४२ नगन वियरे छ (से त विवित्त सयणा-सण-सेवणया) विविधत शयनासनवनता (से त पडिसलीणया) मा १२ मा प्रतिम सीनता (से त वाहिरए तवे) मा प्रडारे ते ७ प्रारना माहतपना लेहले डेसा छ (सू ३०)
हवेमास्यतर तपनु सूर वन-से कितअभितरए तवे इत्यादि
(से कि त अभितरए तये ? ) प्रश्न-माल्यन्त२ त५ शु छ ? उटसा प्रशासना छ १ (अभितरए तवे छविहे पण्णत्ते ) उत्तर-मास्यन्त२ त५ छ रेन। छ (त जहा) ते सा रे छ-( पायच्छित्त विणए वेयावन्च, सज्झाओ झाण विउसम्गो) १ प्रायश्चित्त, २ विनय, 3 यावृत्त, ४ पाध्याय, ५ ध्यान है