Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पोयूपयपिणो टोका सू ३२ मसारसागर वर्णनम
३१३ कलुस-जल-सचय पड़भय अपरिमिय-महिच्छ-कटुसमडचाउवेग - उहुम्ममाण-दगरय-रयधार-परफेण-पउर-आसावाग्येय अजर चयो यन म नया तम् । 'पटमय प्रतिभयम्-महाभयङ्करम् , 'अपरिमियमहिन्छ लुगमद-याउग-उद्रम्ममाण दगरय रयार-चरफेग पउर-आसा-पिवास धवर' अपरिमित महर-कल्पमति-वायुपगो-यमानो-- करजोग्याऽन्धकार परफेन-प्रचुगऽऽगापिपामा-परम्-अपरिमिता =अयधिका ये महच्छा -ताभिलापरन्तो लोका , तेपा कल्पामरिना या मनि सब वायुगन उद्धयमानम्-उट करजोरय -जलकणममूह, तन अधकार दर या म तथा फनरिव-गापिपामाभिधवल र धरलो य म तथा त, तत्राप्राप्ताथाना प्रामि-भाषना आगा , धनसम्बन्धियरतानालसा पिपासा । 'मोहमहारत्तभोगभमभाण गुप्पमाणु उरतपचाणियत्तपाणियपमायचडाइसापयसमाहयुद्धायमाणपन्मार-पोरकायमहाररस्वतभेरपरस'-मोहमहापर्तभोगभ्राभ्यद्गुप्यदुच्छला प्रत्यवनिपतत्पानायप्रमादचण्टभन रूप हा जिमम कला-मलिन-जल का नचय है, (पदभय) महाभयकर हे। (अपरि-मियमरिन्छ कलुसमट-बाउवेग-उद्धम्ममाण दगरयरयधयार-वरफेण पउर-आसा पिवास
ब) जपरिमित- यविक अभिटापागाला मनु'या का जो मिनिष प्रकार का बुद्धिया हे ये है। माना एमके पायुके झोका से उडाये हुए जलकण है, इनसे यह मसारममुद्र अधकार मे युक्त जमा हो गया । आगा एव पिपासारूप प्रचुर फेन से यह धनलिन हो रहा है। अप्रान का प्रामि का भावना का नाम आगाह, ओर धन निधी तीन लालसा का नाम पिपासा हैं। (मोह-महानत्त-भोग मममाण गुप्पमाणुच्छलत पञ्चोणियत्त पाणिय पमाय-चटउह-सावयसमाहयुदायमाणा पभार पोर-कदिय महारपरवत भेरव-रव) इस · सार म जल-मचय) साम4३५०४ मा दुध-भेसा पाणीना सय 2, (पइभय) भडान ४२ ( अपरिमिय-महिमालुसमइ वाउग उद्भुम्ममाण-दगरय-रयव यार परफेण पर आमा पिनास वपल) सपरिभित- २४ मलिदापावाजी भनु ગેની વિવિધ પ્રકારની બુદ્ધિ છે તે જાણે તેના વાયુના ઝપાટાથી ઉડતા જેલ૦ણે છે તેનાથી આ સ સારસમુદ્ર અવિકારથી ભરેલ જેવા થઈ ગયે છે આગા તેમજ પિપાસા (તૃષ્ણા) રૂપ પ્રચુર ફીણથી તે સફેદ થઈ રહેલે છે અપ્રાસ અર્થની પ્રાપ્તિની ભાવનાનું નામ આરા છે અને ધન 10 पी तीन सालानु नाम पिपा (मोह महावत्त भोग भममाण गुप्पमाणु छलत-पायोणिवत्त-पाणिय पमाय-चड पहुदुद्र-सारय-समायुदायमाण पभार-घोर