Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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#ীযথামি आगम्मागम्म रत्ता समणं भगव महावीरं तिमयुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेति, करित्ता वदति नममति, बदित्ता नमंसित्ता साई साड नामगोयाड सावेंति, णच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूस माणा नमसमाणा अभिमुहा विणएण पजलिउडा पज्जुवामति ॥ सू० ३३॥ महावीर तिरसुत्तो आयाहिणपयाहिण करेंति' अमणस्य भगवतो महामारस्य टिन आदक्षिगप्रदक्षिणम्-अलिपुट पदमा त प्रदाञ्जलिपुट दक्षिगकर्णमूलत आरभ्य ललाटप्रदशन वामझर्गान्तिकेन चक्राकार वि परिभ्राम्य ललाटदशे स्थापनाप उर्वति, कृषा वति' वदन्ते स्तुवति, 'नमसति' नमस्यन्ति-नमस्कुर्वन्ति, 'पदित्ता' बन्टिन्या 'नमसित्ता' नम स्थित्वा 'साइ साइ णामगोयार साति' स्वानि स्यानि नामगोत्राणि श्रावयन्ति-मयपति। 'पचासण्णे णादरे' ना यास न नातिदर 'सुस्मसमाणा' शुश्रूपगागा -सेवा कुषाणा 'नमसमाणा' नमस्यन्त =नमस्तुन्ति 'अभिमुहा' अभिमुसा 'विणएण' विनयेन 'पजिलिउडा' प्राञ्जलिपुटा -बद्धाञ्जलय पज्जुवासति' पर्युपासते सेवन्ते ॥सू० ३३|| ॥ पार (आयाहिणपयारिण) अजलिपुट नाँध कर उसे दक्षिण कान से लगा कर मस्तक के पास से बाये मान तक चक्राकार गुमाते हुए पुन मस्तक पर (करेति) रखते थे, (करित्ता) रखकर (वदति नमसति) वदना करते थे, नमस्कार करते थे, (अदित्तानमसित्ता) वदना नमस्कार करके (साइसाइ नामगोयाट साति) अपने अपने नाम एव गोनों का उच्चारण करते थे । (णचासण्णे णाइदूरे मुस्सूसमाणा नमसमाणा अभिमुहा विणएण पजलिउडा पन्जवासति) न अतिसमीप और न अति दुर हो, अर्थात्-भगवान से थोडी दूर पर भगवान के सामन बैठ कर विनयपूर्वक दोनो हाथ जोड कर सेवा करने लगे। सू० ३३॥ જમણા કાનથી લઈને મસ્તકની પાસેથી ડાબા કાન સુધી ચક્રાકાર ફેરવીને,
गने भरत ५२ (करेति) राता तो (करित्ता) राभान (वदति नमसति) वन डरता al, नभन्डार ४२ता उता (पदित्ता नमसित्ता) पहना-नमः४ार शन (साइ साइ नामगायाइ साति) पात-पोताना नाम मे गोत्रना
या उरता ता (णन्चासण्णे गाइदूरे सुस्नूसमाणा नमसमाणा अभिमुहा विणएण पजलिउडा पज्जुवासति) मई सभी५ नड, तभ मई २ नाड, અર્થાતુ ભગવાનથી ચડે જ દૂર ભગવાનની સામે બેસીને વિનયપૂવક બને હાથ જોડી સેવા કરવા લાગ્યા (જૂ ૩૩)