Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
३३४
मूलम्-तेणं कालेण तेण समएण समणस्स भगवओ महावीरस्त वहवे वाणमतरा देवाअंतियं पाउभवित्था-पिसाय-भूयायजस्व___टीका-'तेण कालेग तेण समण' यानि। तम्मिन कार तस्मिन समये श्रमण स्य भगवतो महागारस्य 'पहवे पाणमतरा देया अतिय पाउभरित्या' नया व्यतग देवा अतिक प्राभूवु , ता-गतरा अतरम् अकाग , तचेदायरूपम , विविधम् अतरपता तर कदरा-तर वनातर वा आश्रयरूप येपा तेव्य तग -देवनिगपा , यद्वा 'वाणम तरा' इतिच्छाया । तोय न्यु पत्ति -चनानामन्तरागि वनान्तगगि, तेषु भगा यानमतरा , पृपारा दिवा म ये मकारागम 1 भगव महामारस्वामिसनिमी समयमग्ण व्य तग देवा प्रकटीभूता इत्यर्थ , ते फतिविधा । अना - पिसाय-भूया य' पिंगाचा १, भूताथ ___'तेण कालेण' इत्यादि।
(तेग कालेण तेण समण्ण) उस काल और उस समय म (समणस्स भगवओ महावीरस्म) श्रमण भगवान महावीर के (अतिय) समीप (वहवे) अनक (वाणमतरा देवा) व्यतर देव (पाउभक्त्यिा ) आये । गन्तर इनका नाम इसलिये है कि इनका अतर अव. काग अथात् निवासस्थान अनेक प्रकार के है, जैसे-पर्वत, गिरिकन्दरा, वन आदि । अथवा-वाणमन्तर की । स्कृत छाया 'पानमन्तर' भी होती है । वना तरी मे-बों क म य म-जिनका रहना हो वे पानमतर रे । ये चानम तर भगवान महावीर के समवसरण म उपस्थित हुए । ये व्यन्तर देव क्तिन प्रकार के है ? इस प्रकार की आशका होन पर सूत्रकार उसका समाधान करते हा उनक भदा को गिनाते है-(पिसाय-भूया य जपत्र
' तेण कालेण' त्या
(तेण कालेण तेण समण्ण) a स मने ते समयने विषे (समणस्स भगरओ महावीररस) श्रमश नगवान महावीरनी (अतिय) पासे (बहवे ) अनेः (वाणमतग देवा) व्यत२ हेवा (पाउन्भवित्था) माया व्यत२ मे તેમનુ નામ એ કારણથી છે કે તેમનુ અન્તર-અવકાશ, અર્થાત્-નિવાસ સ્થાન, અનેક પ્રકારનું છે, જેમકે પવતે, પવતની ગુફા, તથા વન આદિ मथवा 'वाणमतरनी सस्त छाया 'वानमन्तर' थाय छ बनान्तराभा-बनाना મધ્યમ-જેમનુ રહેવાનું થાય તે વાનમન્તર છે આ વાનમન્તર ભગવાન મહાવીરના સમવસરણમાં ઉપસ્થિત થયા આ વ્યન્તર દેવ કેટલા પ્રકારના छ ? मापी शनु समाधान २ता सूत्रधार तेना सेहो दई छ-(पियास