Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पोपापणी टीका सृ ३३ असुरकुमारदेववर्णनम्
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साइ असकिलिट्टाई सुहुमाइ वत्थाइ पत्ररपरिहिया, वय च पढम समडकता वियच असपत्ता भद्दे जोव्वणे ब्रहमाणा, तलभगयघृष्टचत्नचर्चितशराश | अथ नखपणा याह- 'ईसी सिलिप पृष्फ पगासादयन् मिलीपुराणानि मनाउसमप्रभाणि उपन सितानी यर्थमिवती नृमिभिला उनकमिन नहिर्निम्मरति, मता तरे तु तमु रक्तवर्णमनग्राद्य यतोऽयुग रक्तामना प्रायो भगतानि । पुन काट्ट्गानि वस्त्राणि 'अन 'मुहुमाङ' सूक्ष्माणि 'अस फिटिडाइ' अमविष्टानि-वृषणरहितानि । 'वत्था' क्याणि - 'पवरपरिहिया' प्रनरपरिहिता - प्रवरम् - उत्कृष्ट यथा तथा परिहिता = परिधृतत । 'वय च पढम समयकता' वयथ प्रथमम् = पोटावर्षपर्यउनका समस्त शरार रिम था । (इसी सिन्धि- पुप्फ पगसाउ) हॉन जो पत्र पनि रखे व कुछ कम सफ्त थे, जसे सिली पुष्पका प्रकाश होता है वैसा हा उनका प्रकाश था। चपातु म जमान को फोड कर उन के आकार जैसा जो पुप्प उपन होता है उसका नाम सिरीन है । किन्हीं २ का मत है कि यह पुष्प रक्तवर्ण भी होता है । जत उसक ग्रहण से उनक वस्त्र रक्तवर्ण के थे ऐसा ही समझना चाहिये । क्यों कि असुर जाति के देव प्राय लाग्यत्र वाग्ण करने वाडे होते है । ( मुहुमाई ) ये वख - जिहे इन्होंने पहिन ग्मे थे, अयन्त मन्म-पतले थे, (असकिल्लिट्ठाई) और ताप रहित थे। (वस्थाइ पत्रर परिहिया) ऐसे वस्त्र इन्होंने अछी तरह से अपने शरीर पर धारण कर रखे थे । ( वय च परम समक्क्ता) प्रथम ये उधन कर चुके थे, अर्थात् ये सन सोलह वर्ष मे ऊपर के जैसे मातृम होते
आई ( लीना ) थन्दन (सूणउ ) वजे तेभना आणा शरीर सिम्त हता ( इसी मिलिं - पुप्फ-प्पगासाइ ) तेथेोथे ने વસા પહેર્યો હતા તે ૬૦૮ એછા મહેદ હતા જેવા સિલીન્ધ પુષ્પના પ્રાગ હાય છે તેવા જ તેમના પ્રકાશ હતા. વર્ષાઋતુમા જમીનને કાઢીને છત્રના આકાર જેવા જે પુષ્પ ઉત્પન્ન થાય છે તેનુ નામ સિલીન્ધુ છે ગઈ કાઈના મત છે કે આ પુષ્પ લાલ રગના વાય છે ત્યારે એ અથ ગ્રહણ કવાયી તેમના વસ્ત્ર લાલ-ગના હતાએમ જ સમજવુ જોઈએ કેમકે અસુર જાતિના દૈન ઘણુ કરીને લાલવસ્ત્ર धारण उश्वावाजा होय हे (सुहुमाइ ) या वस्त्र ने तेयोमे पहेर्या हुता ते अत्यत सूक्ष्म-पातणा हुता ( असकिलिट्ठाइ ) भने छोपरडित हुता (बत्थाइ पवर परिहिया) मेवा वस्त्रो तेथे भारी ते पोताना २ डीरे धान्यु ज्या ता ( वय च पढम ममस्कता) प्रथम वयनु तेभ्यो टिस धन ठरी शून्या हुती, मर्यात्