Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पीपपणी दोवा ३२ महानामिशिष्यवर्णनम
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मनार
भीमदरिसणिज तरति धिड-पणिय-निष्पकपेण तुरिय-चवल सपर - वेरग्ग - तुगकृय - लुसपउण णाण- सिय- विमल - मृसिएण सम्पन्त - विमुङ लण्ड - णिजामरणं धीरा संजमपोएण मीलक'ससारमागरम तरन्ति - अप'मन' यमाणेन सम्वसारभयो दिना यम यमन पायी तिन यमपोते याह- 'पिणियनिष्पस्पेण' धृति निरनिपतिरनन निकम्=अयर्थं निष्प्रकम्प = कम्पनरहितम्तन पोनन, 'तुरियचन' सरितचपलम्=अनिशानम्, – 'सवर-वेरग्ग-तुगवय सपडते'ग पर सुप्रयुकेन तत्र र=प्रागानिपातादिरितिगति यस्तु यु कृपक-पोनम स्थित स्तम्भ, तन मुटु सम्प्रयुक्त - सम्यतया प्राजितस्तन, गाम सिय मिसिएण ज्ञान मितनिमनेन ज्ञानमेन मितन वसतयनिमल उनि यन तेन, मूले प्राकृता । नाकम्पत मान नौका वेगगामिनी भवति । सति सानोऽपि पोनवारणभाव्यमि याहह-'सम्मत मुलद्धणिनाम(नियिणिकपेण) तिन्रजनन से जो अयत निष्प्रकष ह । (तुरियचवल) गति जिसका जयंत शनिगामा ह (मवर वेग्या तुम कृपय सुसपउत्तेण) पर-प्राणातिपातादि से निवृत्तिरूप निरतिशय-नि म अनभिवरूप वृत्ति- ये दोनों ही जिसके नाचम एक ऊँचा उपक-स्तम्भ ह । (णाग- सियनिमल मुमिए) ज्ञानरूपी सफेदवस्त्र का जिसम पाल तना हुआ है। नौका म एक कटो का सम लगा रहता है जिस पर एक कपटाता रहता है। उससे हवा का स्कावट होन से नोफा बड़े वेग से चलती है। यहां वटित किया है। (सम्मत विमुद्र रुद्र गिनामण ) जिसमे स- (चिह्न नियणित्पपेण) वनिश्य होन्डाना अवनयी ? बहुल निमडप ( ) ) ( तुरियचनल) गति लेनी भजन वेगवाणी (सवर वैरग्ग गण) सप-प्राणानिधानादिथी નિવૃત્તિરૂપ વિતિ તેમજ વનગ્ય વિષયે મા અનાસક્તિરૂપ વૃત્તિ-એ અને જેના વચમા એક ઉંચા भक्तल े (नाण-मित्र निमल मुसिण) नानी नह वस्त्रो नेभा सद હાય છે વહાણમા એ લાડાના થાભવા લાગેઙા હેાય છે જેના પર એક કપડું (મઢ) તાણેલા હોય છે તેમા હવા શેકાઈ જાય છે તેથી ભગને વહાણુ બહુ वेगथी याते } ४३५ शगडी वगवेषु ) ( सम्मत्त - निमुह लद्व णिज्नामएण)
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