Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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औपपातिक
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विए, दसविए २, चरितविणए ३, मणविणए ४, वयविए ५, कायविण ६, लोगोवयारविणए ७ । से कित जाणविणए ? णाणविणए पंचविहे पण्णत्ते, त जहा- आभिणि चोहियणाणविणए १, सुयणाणविणए २, ओहिणाणविणए ३, भक्त्यारूप, स ' सत्तविहे पण्णत्ते ' समधिन । 'त जहा ' तथथा - १ - 'णात्रि ए' ज्ञानग्निय, २ - ' दसणणिए' दर्शननिनय, ३- ' चरितरिणए' चारित्रविनय, 'मणोरिए' मनोविनय ५' इविणए ' वाग्निनय, ६ 'कायनिणए' काय विनय, ७- 'लोगोत्रयारचिणए' लोकोपचारविनय । एप समनिनोऽपि विनय क्रमेण स्वरूपतो भेटतच निरूप्यते - ' से किं त णाणविणए ' अथ कोऽसौ ज्ञानिय ? उत्तरमाह - 'पाणविणए' ज्ञानविनय ' पचविहे पण्णत्ते ' पञ्चविध प्रजप्त, 'त जहा ' तद्यथातत्पश्ञ्चनित्य दर्शयति- 'आभिणिवोहियणाणविणए 'आभिनिनोधिकनानविनय, 'सुयणाण
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यह विनय गुरु आदि के आने पर सडे हो जाना, तथा वदना, शुश्रूपा, भक्ति आदि करना, इस रूप से गाह्रो मे प्रतिपादित किया गया है । (त जहा) विनय के सात प्रकार ये हे- ( णाण विणए, दसगविणए, चरित्तविणए, मणविणए, चइविणए, कायविणए, लोगोत्रयारविणए) ज्ञानविनय, दर्शनविनय, चारित्रविनय, मनोनिनय, वचनविनय, कायविनय, और लोकोप चारग्निय । अन यथाक्रम इनके स्वरूप और भेदों का वर्णन सूनकार करते है - ( से किं ताविए) वह ज्ञाननिय क्या है ' अर्थात् जिसमे ज्ञान का विनय किया जाता है ऐसा वह ज्ञाननिय कितने प्रकार का है', (जाणविणए पचविहे पण्णत्ते) ज्ञानविनय पाच प्रकार का कहा है । ( व जहा ) वे पाच प्रकार ये है- (आभिणिनोहियणाणविणए, सुयપ્રકારના છે જે ગામ જતના કર્મોને દૂર કરે છે તે વિનય છે. આ વિનય તપ, ગુરુ આદિ પધારતા ઉભા થઇ જવુ, તથા વજ્ઞના શુષા આદિ કરવા, એ રૂપે શાસ્ત્રોમા प्रतियाहन यु छे (त जहा ) विनय तथना ते सात अजर या छे - ( जाणविणए दसणविणए चरितविणए मणचिणए वयविण कायनिणए लोगोवया रविणए ) ૧ જ્ઞાનવનય,૨ દવિનય, ૩ ચારિત્રવિનય, ૪ મનેાવિનય, પ વચનવિનય, કાય વિનય, અને છ લેાકેાપચાવિનય હવે તેનુ ક્રમવાર સ્વરૂપ તથા પ્રકારનુ વર્ણન सूत्रठार रे छे ( मे किं त णाणविणए ) ते ज्ञानविनय शु छे?, अर्थात् જેમા જ્ઞાનના વિનય કરાય છે એવે તે જ્ઞાનવિનય કેટલા પ્રકારના છે? ( णाणविण पचविहे पण्णत्ते) ज्ञानविनय पाय अारना उसे छे (त जहा) ते पाय अजरमा (आभिणियोहियणाणविणण, सुयणाणनिणए, ओद्दिणाणविणए,