Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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औपपातिकतरे मूलम्-से कि त निउस्सग्गे ? विउस्सग्गे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-१ दव्वविउस्सग्गे, २ भावविउस्सग्गे य । से कि तं दव्वविउस्सग्गे ? दव्वविउसग्गे चउविहे पपणत्ते, तं जहा-१ सरीर
___टीका--आभ्य तरतपम पष्ठभेदमाह-' से किं त विउस्सग्गे' अथ कोऽसौ व्युत्सर्ग १ व्युत्सर्ग फिस्वरूप कतिविधयेति प्रश्न । व्युसर्ग -वि=विशेषेण, उत्-उकृष्ट भावनया सर्ग =त्याग । 'विउस्सग्गे दुविहे पण्णत्ते व्युसगों द्विविध प्रजप्त , 'त जहा' तयथा १-'दव्वविउस्सागे' द्रययुसर्ग , २-'भापविजस्सग्गे' भावयुसर्ग । 'से कि त दयविउस्सग्गे ? ' अथ कोऽमौ द्रव्यन्युसर्ग १ 'दबविउस्सगे चउन्विहे पण्णत्ते' द्रव्ययुत्सर्ग -चतुर्विध प्राप्त , 'त जहा' तद्यथा-'सरीरविउस्सग्गे' ठारीरस्युसर्ग ।१। परिणमती रहती है। इस प्रकार जो चितन करना इसका नाम विपरिणामानुप्रेक्षा है । (से त झाणे) इस प्रकार चार ध्यानका वर्णन हुआ ॥ मू० ३०॥
से कि त विउस्सग्गे' इत्यादि,
अद्य आभ्यन्तर तपका जो छठा भेद व्युत्सर्ग है उसका वर्णन करते है-(से कि त पिउस्सग्गे) विशेष रीति से उत्कृष्ट भावनापूर्वक परित्याग करना व्युसर्ग है, वह व्युत्सर्गतप क्या-कितने प्रकार का है ? (विउस्सग्गे दुविहे पण्णत्ते) व्युत्सर्ग के दो भेद है, ( त जहा) वे ये है-(दवविउस्सग्गे भावविउस्सग्गे) १-द्रव्यव्युत्सर्ग और २-- भानव्युसर्ग । (से कि त दबविउस्सग्गे) द्रव्यव्युत्सर्ग क्या-कितने प्रकार का है' (दयविउस्सग्गे चउबिहे पण्णत्ते) द्रव्यव्युत्सग चार प्रकार का है । (त जहा) जैसे
કરતી હોય છે, એક જ રૂપે કદી નથી રહેતી એ પ્રકારે જે ચિતન કરવું તેનું नाम विपरिक्षाभानुप्रेक्षा (से त झाणे) से प्रभाणे या२ व्याननु वन ययु (स० ३०)
‘से कि त विउस्सगे? ' त्या
હવે સૂવાર આભ્યન્તર તપને જે છઠ્ઠો પ્રકાર વ્યુત્સર્ગ છે તેનું વર્ણન કરે 3-(से कि त विउस्सगे) विशेषशतिथी सायना परित्याग ४२वो व्युत्सर्ग छे व्युत्सम त५ 32 जानु छ ? (विउस्सग्गे दुविहे पण्णत्ते) सेना से प्रा२ छ,-( त जहा) ते मा छे-(दम्वविउस्सगे भावविउस्सगे य) ૧ દ્રવ્યવ્યત્સર્ગ અને ૨ ભાવવૃત્સર્ગ વ્યવ્રુત્સગ શુજેટલા પ્રકારનું છે? (लविरसग्गे चविहे पप्णत्ते) से द्रव्ययुमा यार जानु छ (त जहा)