Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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औपपाकिस
चत्तारि लक्खणा पण्णत्ता, तं जहा - विवेगे १, विउस्सगे २, अव्वहे ३, असम्मोहे ४ | सुकस्स ण झाणस्स चत्तारि आलंबणा पण्णत्ता, त जहा - खंती १, मुत्ती २, अजवे ३, मदवे ४ । सुक्कस्स
'विवेगे' विवेक - पृथक्करण, स च पृथकार - देहाढा मनो बुद्ध्या निवेचनम् ॥१॥ 'विस' ज्यु सर्ग -- निस्सङ्गतया देहोपधियाग ॥२॥ ' अव्यहे ' अव्ययम्--दनाद्युपसर्गजनित भय व्यथा - तया रहितम् ॥३॥ 'असमोहे' असमोह - देवमायाजनितस्य मूढत्वम्य निषेध ||४|| 'सुकस्स ण झाणस्स चत्तारि आपणा पण्णत्ता' शुक्लस्य यलु ध्यानस्य चत्वार्यालम्बनानि प्रनमानि, ' त जहा ' तथथा - ' खती ' क्षान्ति - परकृताऽपकारसहनम् ॥१॥ 'मुक्ती' मुक्ति - निलभता ॥२॥ ' अज्जवे' आर्जन - सरलता ||३|| ' महवे ' मार्दन - मृदुता ||४|| 'सुकस्स ण झाणस्स चत्तारि अणुप्पेहाओ पण्णत्ताओ' शुक्लस्य
भिन्न जानना १। (त्रिउस्सग्गे) व्युत्सर्ग- देह तथा उपधि का परित्याग करना २ । (अव्हे) अन्यथ-व्यथारहित होना-देवादिकृत उपसर्गजनित भय का नाम व्यथा है, इससे रहित का नाम अव्यथ है, अर्थात् - देवादिकृत उपसर्गों का निश्चल भावसे सहन करना ३ । (असमोहे) असमोह-मोहरहित होना-देवादिक द्वारा प्रदर्शित मायाकी ओर आकृष्ट नहीं होना ४ (कम्स ण झाणस्स चत्तारि आलवणा पण्णत्ता) शुक्लध्यान के चार आलान हैं, (त जहा) वे इस प्रकार हैं- (खती) क्षान्ति - परकृत अपकार का सहन करना १, (मुत्ती) मुक्ति-लोभका परित्याग करना २, (अजवे) आर्जव - चित्त मे सरलता रखना ३, और (मद्दवे) मार्दव गुणका होना ४ । (मुकस्स ण झाणस्स चचारि अणुहाओ पण्णत्ताओ) शुक्लयान की चार अनुप्रेक्षा है, (त जहा ) वे ये है - (अवायाणुप्पेहा) अपायानुप्रेक्षा
(विउस्सग्गे) व्युत्सर्ग-हेड तथा उपधिना परित्याग ४२वो ( अव्वहे) अभ्यथ-भ्यथा રહિત હાવુ-દેવાદિષ્કૃત ઉપસથી થયેલ ભયનુ નામ વ્યથા છે,તેનાથી રહિતનુ નામ અન્યથ છે, અર્થાત્ દેવાદ્રિકથી કરાએલ ઉપસર્ગાને નિશ્ચ ભાવથી સહન કરવા (असमोहे) अस मोड भोडरडित थ्यु - हेवाद्दिद्वारा प्रहर्शित भाया तर भाष 1डि (सुकरस ण झाणस्स चत्तारि आलपणा पण्णत्ता) शुध्यानना और आस मेने छे, (त जहा) ते या प्रारे छे - (सती) क्षान्ति-मील अस अथारने सहुन ४२वे।, (मुत्ती) भुक्ति-बोलना परित्याग श्वा, (अज्जवे) या व वित्तभा सरता राजवी, अने (मद्दवे) भाव-भृता गुथु थवु (मुक्कस्स ण झाणस्स चत्तारि अणुष्पे हाओ पण्णत्ताओ) शुद्ध ध्याननी यार अनुप्रेक्षा छे, (त जहा ते रा है (अप्रायाणावेहा)