Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पोयूषयषिणी टीका र ३० व्युत्सर्गभेदवर्णनम्
३०५ यससारविउस्सग्गे, ३ मणुयसंसारविउस्सग्गे, ४ देवससारविउस्सग्गे। से त ससारविउस्सग्गे।से कि त कम्मविउस्सग्गे' कम्मविउस्सग्गे अविहे पण्णते, त जहा, १ णाणावरणिजफम्मविउस्सगे,२दरिसणावरणिज्जकम्मविउस्सग्गे,३ वेयणिज्जकम्मविउस्सग्गे, ४ मोहणिजकम्मविउस्सग्गे, ५आउकम्मविउस्सग्गे,६णामकम्मविउस्सग्गे ७, गोयकम्मविउस्सग्गे ८,अतरायकम्मविउस्सग्गे । से त कम्मविउस्सग्गे। से त भावविउस्सग्गे ॥ सू० ३० ॥ स्सगे' मनुजसारयुसर्ग [३। 'देवससारविउस्सग्गे' देवममारव्युसर्ग 1४॥ ‘से त ससारविउम्मग्गे' म ण्य ससाग्व्युसर्ग । ' से फि त कम्मविउस्सग्गे' अथ कोऽमौ कर्मव्युसर्ग 'कम्पविउस्सग्गे अट्टविहे पण्णत्ते' कर्मव्यु सर्ग अष्टविध प्रजम । 'त जहा' तद्यथा-'णाणावरणिनकम्मविउस्सग्गे' ज्ञानापरणीयकर्मव्युसर्ग 1१। 'दरिसिणावरणिनकम्मविउस्सगे' दर्शनाऽवरणीयकर्मव्यु सर्ग ।२। 'वेयणिनकम्मविउस्सगे' वेनीयकर्मव्यु सर्ग ।३। 'मोहणिज्जकम्मविउस्सग्गे' मोहनीयक्रमगे ३, देवससारविउस्सग्गे ४) नैरयिक सारव्युसर्ग, तिर्यक् मारव्युत्सर्ग, मनुजस्सारब्युसर्ग, एव देवस्मारब्युसर्ग, (से त ससारविउम्सगे) इस प्रकार चारगतिरूप न्सार का यह व्युसर्ग (परियाग) मारब्युसर्ग है। (से किं त कम्मविउस्सग्गे) कर्मव्युत्सर्ग क्या फितन प्रकार का है । (कम्मविउम्सग्गे अविहे पण्णत्ते) जिसमे आठ प्रकार के कर्मोंका व्युसर्ग-परित्याग हो वह कर्मव्युसर्ग आठ प्रकार का है, (जहा) जैसे (णाणावरणिज्नकम्मविउस्सग्गे १,दरिसगावरणिज्ज कम्मविउस्सग्गे २,वेयणिज्जसम्मविउस्सग्गे ३,मोहणिज्जकम्मविउस्सग्गे देवससारनिउस्सग्गे) नैयि४५ सा२०युत्मा, तिय इस सा२युत्सर्ग, मनु मसारव्युत्स तेम देवसमाव्युत्सर्ग (से त ससारविउस्सग्गे) 2. डारे ચારેય ગતિરૂપ સનારને આ વ્યુત્સર્ગ (પરિત્યાગ) તે અમારવ્યુત્સર્ગ છે (से कि त कम्मविउस्सग्गे) भव्युत्सम 2सा प्रा२ने। १ (कम्मविउस्सग्गे अद्वविहे पण्णत्ते) मा माठय प्रारना उभाना व्युत्म-परित्याग 25 लय छ मेवो A1 भव्युत्म 0 प्राग्नी छे, (त जहा) रेभ-(णाणावरणिज्ज कम्मविउस्मग्गो, नरिसणामरणिउनकम्मविउस्सग्गे, वेयणिज्जक्म्मवि उस्सग्गे, मोहणि