Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
पोपयर्पिणी- टीका व ३० ध्यानभेदवर्णनम
२, परिणा ३, धम्म हा ४ | धम्मस्स णं झाणस्स चत्तारि अणुप्पेहाओ पण्णत्ताओ, त जहा - अणिच्चाणुप्पेहा १, असरणाणुप्पेहा २, एगत्ताणुप्पेहा ३, ससाराणुप्पेहा ४ ।
वाचना, २ 'पुरणा' प्रच्छना, ३- 'परियणा' परिवर्तना, 'पम्मका धर्मकथा, 'पम्मस झाणम्स चत्तारि अणुहाओ पण्णत्ताओं' नर्मस्य यल ध्यानस्य चतस्रोऽनुप्रेक्षा प्रनना 'त जहा ' तथथा - 'अगिचाणुहा' अनियानुसा=अनि यचिन्तनिका, तथा चोक्तम्काय मनिहितापाय, मपत पापम् ।
46
समागमा सापगमा सर्वमुपाति भगुरम् " ॥ १ ॥ इति ॥
9
२८७
इस प्रकार है- (प्रायणा) नाचना १, (पुच्छणा) प्रच्छना २, (परियणा) परिवर्तना ३, (महा) धर्मकथा ४ । उनका स्वरूप पांडे कह दिया गया है । ( पम्मस्स ण आणस्स चत्तारि अणुप्पेहाओ पण्णत्ताओ) धर्म यान का चार अनुप्रेमा कहा है, (त जहान हे - ( अणिच्चाणुप्पेहा) अनियानुप्रेक्षा- सम समस्त पोद्गलिक पदार्था का अनियरूप से चित्तवन किया जाता है, जैसे
काय सनिहितापाय, सपढः पदमापदाम् । समागमाः सापगमा, सर्वमुत्पादि भङ्गुरम् ||१||
इस शरीर के पांडे अपाय - रोगादि लगा हुआ है । इसलिये यह नष्ट होने वाला । यह धनादिसम्पत्ति, आपत्तियो का स्थान है । क्योकि इसके कारण स्त्री, पुत्र, मिन, स्वजन, परिजन और ग्रामजन आदि से शत्रुता होता है, लडाइ होती है, अन्त मे छे, (त जहा ) ते या अठारे - (वायणा) वायाणा-वायवु १, (प्रच्छना अच्छा५० २, (परियहणा ) परिवर्तनी - आवृत्ति रवी 3, ( धम्मका ) धर्म या ४, शोभनु स्व३५ चाछ न्हेवाट गयु हे ( वम्मस्स ण झाणस्स चत्तारि अणुप्पेहाओ पण्णत्ताओ ) वर्भध्याननी यार अनुप्रेक्षा नही छे, ( त जहा ) ते भा प्रभा - ( अणिच्चाणुपेहा) अनित्यानुप्रेक्षा-खामा समस्त चौरासिङ पढार्थोनु અનિત્યરૂપથી ચિતવન કરવામા આવે છે જેમકે~~
काय सनिहितापाय, सपद परमापलम् । समागमा सापगमा ममुत्पादि भङ्गरम् 11 < 1
આ રાીરની પાછળ અપાય-રાગ આદિ લાગી રહેલા છે, તે માટે તે નાશ પામવાવાળુ છે આ ધન-ધાન્યાદિ–સ પત્તિ આપત્તિએવુ
સ્થાન છે
1