Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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औपपातिकसने __ अज्झाणे चउबिहे पण्णते, त जहा-अमणुण्णसंपओगसपउत्ते तस्स विप्पओगसइसमपणागए यावि भवड १, मणुण्ण
एषु चतुर्विधेषु ध्यानेषु प्रथममार्तगान चतुविरमाह-'अट्टाणे चउबिहे पण्णत्ते' मार्त यान चतुर्विध प्रनाम्, 'त जहा' तयथा-१-'अमणुण्णसपोगसपउने तस्स विप्प ओगसइसमण्णागए यानि भवद ' अमनोनसम्प्रयोगमप्रयुक्तस्तम्य विप्रयोगस्मतिसमन्वागतश्चापि भवति-अमनोन =अनिष्टो य शानि , तस्य सम्प्रयोगा योगस्तेन सम्प्रयुक्तो य स तथाविध सन् तस्य अमनोनगन्दादे निप्रयोगस्मृति =पियोगचिन्ता, तया समन्वागत = अनुगतश्चापि भवति, एतद् आर्तध्यानम् , व्यान यानपतोरभेटोपचाराद ध्यानपानपि ध्यानमुच्यते, एवमग्रेऽपि यो यम् । २-मणुण्णसपभोगसपउत्ते तम्स अविप्पओगसइस
इन चार प्रकार के ध्यानो म प्रथम जो आर्तध्यान है, वह चार प्रकार का है, इसी बात को बताने के लिये पत्रकार कहते है-(अट्टहाणे चउबिहे पण्णत्ते) आर्त यान ४ प्रकार का कहा गया है । (त जहा) वह इस प्रकार से-(अमणुण्णसप ओगसपउत्ते तस्स विप्पओगसदसमण्णागए यावि भवद) अमनोज--अनिष्ट गन्दादि के सबध होने पर उसके विप्रयोग-दूर करने के लिये जो बारमार विचार किया जाता है वह अनिष्टसयोगज आर्त यान है । यहा ध्याता को जो यान कहा है वह ध्यान और धानवान् में अभेद के उपचार से जानना चाहिये। इसी तरह से आग के ध्यानों मे भी अभेद का उपचार जानना । (मणुग्णसपओगसपउत्ते तस्स अविप्पओगसइसमण्णागए यावि
આ ચારેય પ્રકારને ધ્યાનમાથી પ્રથમ જે આત્ત ધ્યાન છે તે ચાર प्रहारनु छ, मे पात उडेवा भाट सूत्र२७ -(अट्टज्झाणे चउव्यिहे पण्णत्ते) मात्त ध्यान यार प्रहारना डेटा छ (त जहा) ते सारे छ-(अमणुण्णसप ओगसपउत्ते तस्स निप्पओगसइसमण्णागए यावि भवइ) मनाश-मनिष्ट શબ્દાદિકને સ બ ધ થતા તેને વિપ્રગ-દૂર કરવા માંટે જે વારવાર વિચાર કરવામાં આવે છે તે અનિષમગજન્ય આધ્યાન' છે અહી ધ્યાન કરનારને જે ધ્યાન કહેવામાં આવ્યું છે તે ધ્યાન અને ધ્યાનવામા અભેદ
hોના ઉપચારથી થયે છે તેમ જાણવું જોઈએ, એ જ રીતે આગળના पनामा ५ मोहनी Guयार aaa (मणुणसपओगमपउत्ते तस्स अविप्पओगसइसमण्णागए यावि भगइ) भनाश- Awesविपयाना