Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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औपपातिकतरे चरित्तविणए पचविहे पण्णते, त जहा-सामाइयचरित्तविणए १, विनय ?-अनफज मसनिताऽष्टनिसर्गसमयरय क्षयाय चरण चारित्र-सर्वविरतिलक्षणम् , तत्सम्बन्धी विनयश्चारित्रविनय , स कतिविध , इति प्रश, उत्तरमाह-'चरित्तविणए पचविहे पण्णत्ते' चाग्निविनय पञ्चविध प्रनम 'त जहा' तथथा-'सामाइयचरित्तविणए' सामायिकचारित्रविनय -सर्वजीवेषु रागद्वेषविरहितो भाव सम , तस्य समस्य-प्रतिक्षणमपूर्वापूर्वकर्मनिर्जराहेतुभूताया विशुद्धगया लाभ समाय , स एव सामायिकम्-सावद्ययोगविरतिरूपम् , विनयादित्वात् स्वार्थे ठा, तद्रूप चारित्र, तस्य विनय -सामायिकचारित्रविविणए पचविहे पण्णत्ते ) अनेक जन्म म उपार्जित आठ प्रकार के कर्मों के क्षय के लिये जो आचरण किया जाय वह सर्वविरतिरूप चारित है । इस चारित्र का विनय करना सो चारित्रविनय है । वह पाँच प्रकार का है । (त जहा) वे प्रकार ये है (सामा इयचरित्तविणए छेदोवद्यापणियचरित्तविणए परिहारविसुद्धिचरित्तविणए सुहुम सपरायचरित्तविणए अहसायचरित्तविणए ) सामायिकरूप चारित्र का विनय, छेदोपस्थापनीयचारित्र का विनय, परिहारविशुद्विचारिन का पिनय, सूक्ष्मसम्परायचारित्र का विनय, एव यथाख्यातचारिन का विनय । समस्त जानों मे राग एव द्वेष की परिणति का परिहार करना इसका नाम “ सम" है । प्रतिक्षण अपूर्व अपूर्व कर्मनिर्जरा के कारण इस समरूप विशुद्धि का आय-लाभ होना इसका नाम 'समाय' है । "समाय" ही सामायिक है। यह सामायिक सर्वसावद्ययोगविरतिरूप है । इस प्रकार इस सर्वसावद्ययोगविरतिरूप सामायिकचारित्र का जो विनय है वह सामायिकचारिनविनय है । पूर्वदीक्षापर्याय का छेदन છે અનેક જન્મમા ઉપાર્જિત આઠ પ્રકારના કર્મોના ક્ષયને માટે જે આચરણ ४राय छे ते सर्व विति३५ यान्त्रिले (त जहा) ते प्रा२ २॥ छ-(सामाइय चरित्तविणए छेदोरट्ठावणियचरित्तविणए परिहारविशुद्विधरित्तविणए, सुहुमसपराय चरित्तविणए, अहस्खायचरित्तविणए) सामायि:३५यारिवन विनय, छे પસ્થાપનીયચરિત્રને વિનય, પરિહારવિશુદ્ધિચારિત્રને વિનય, સૂમસ ૫ રાયચારિત્રને વિનય, તેમ જ યથાખ્યાતચારિત્રને વિનય સમસ્ત માં शतभन देषनी परिणतिने। परिडा२ (त्या) ३२। तेनु नाम 'सम" છે પ્રતિક્ષણે અપૂર્વ અપૂર્વ કર્મનિર્જગના કારણભૂત આ સમરૂપ વિશુદ્ધિને हाल वो तेनु नाम "आय'' छ सम भने आय से भन्ने पनि भेणाथी
माय से यह मनी नय छ समाय ०८ मामयि छ । सामायि: સર્વસાવદ્યગવિરતિરૂપ છે આ પ્રકારે આ સર્વસાવદ્યયોગવિરતિરૂપ