Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
२४९
___ पीयूषयपिणी-टोका स ३० प्रायश्चित्तभेदवर्णनम्
गारिहे ४, विउस्सग्गारिहे ५, तवारिहे ६,छेदारिहे ७, मूलारिहे ८,
अणवट्टप्पारिहे ९, पारंचियारिहे १० से त पायच्छित्तै । __ योग्यम् ।। 'विवेगारिहे। विवेकाऽहम्-विवेक-अनेपणीयभक्तादिपरित्याग , तदर्हम् ।४। 'विउम्सग्गारिहे' युमगाऽहम्-युसर्ग =कायोसर्ग , तद्योग्यम् ५। 'तवारिहे' तपोऽईम्-तप =नमस्कारसहितकालादारभ्य पण्मासपर्यन्तमनशनम, तर कस्यापि तपसो योग्य तपोम-अताचार , तद्विशोधकत्वात् प्रायश्चित्तमपि तपोऽईमुच्यते इति NE 'टेदारिहे' रेगहम-रोट -निपञ्चकादारभ्य पण्मासपर्यन्त साधुपर्यायस्य न्यून ताकग्ण, तहम् 191 'मूलारिहे' मूलाऽहम्-मूल-पुनर्वतस्योपस्थापनम्-पुनीक्षारोपणम् , तदहम् ।८। 'अणवटुप्पारिहे' अनवस्थाप्याऽहम्-यस्मिन् आसेविते क चन काल बतपु अनवस्थाप्य कृपा पश्चात्तपचीर्णतया तदोपोपरतो मतेपु स्थाप्यते तदनवस्थाप्यारीम् । योग्य होता है वह तदुभयाई प्रायश्चित्त है ३ । (विवेगारिहे) अनेषणीय भक्तादिक का परित्याग करना विवेक है, इसके योग्य जो प्रायश्चित्त है वह विवेकाई प्रायश्चित्त है ४ । (विउसग्गारिहे) व्युसर्ग गन्द का अर्थ कायोसर्ग है । इसके योग्य प्रायश्चित्त का नाम व्युसगार्ह प्रायश्चित्त है ५ । (तवारिहे) जो प्रायश्चित्त तपस्या के योग्य होता है वह तपोऽई प्रायश्चित्त है। यह प्रायश्चित्त नोकारसी से लेकर उ मास तक होता है ६ । (उदारिहे) साधुपयाय मे पाँच दिनसे लेकर उ मास तक की साधुपर्याय को न्यूनता करना छेदाई प्रायश्चित्त है ७१ (मूलारिहे ) जो प्रायश्चित्त पुन दीक्षा आरोपण के योग्य होता है वह मूलाई प्रायश्चित्त है ८ । ( अणवद्रप्पारिह) जिस दोपके सेवन करने पर मयमीजन कुछ काल तक महानतों के विषय मे अनवस्थापित अलग-कर दिये जाते है, प्रतिभा, ये अन्नने योग्य होय छेतलया प्रायश्चित्त छ 3 (विवेगारिहे) અને પણીય ભેજન આદિકને પરિત્યાગ કરવો તે વિવેક છે તેને એગ્ય જે प्रायश्चित्त छ विवाह प्रायश्चित्त छ ४ (विउसग्गारिहे) व्युत्सम शाहने। અર્થ મત્સર્ગ છે તેને ચગ્ય પ્રાયશ્ચિત્તનું નામ વ્યુત્સર્ગાતું પ્રાયશ્ચિત્ત છે ૫ (तवारिहे) २ प्रायश्चित्त तपन्याने योज्य डाय छते तपाई प्रायश्चित्त छे मा प्रायश्चित्त नरसीथी सधन . भास सुधी थाय १. (छेयारिहे) સાધુપાયમા પાચ દિવસથી લઈને છ માસ સુધીની સાધુપર્યાયની ન્યૂનતા ४२वी ते हाई प्रायश्चित्त छ ७ (मूलारिहे) २ प्रायश्चित्त श्रीन हीक्षा यारोपणने योग्य खाय ते भूदा प्रायश्चित्त छ ८ (अणपट्टप्पारिहे। દોષનુ સેવન કરવાથી એ યમી જન કેટલાક કાળ સુધી મહાવ્રતના વિષયમાં