Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
૨૨૨
-
पीयूषयषिणी-टीका स ३० रमपरित्यागतपोयर्णनम
मलम-सेकित रसपरिचाए रसपरिच्चाएअणेगविहे पण्णत्ते, त जहा १ निविडए, पणीयरसपरिचाए, ३आयविलिए,
टीका-'से कित' इयाति-'से कि त रसपरिचाए ' अथ कोऽमौ ग्सपरित्याग ', 'रसपरिचाए' ग्मपरियाग 'अणेगविहे पण्णत्ते ' अनकपिय प्रजम , 'त जहा' तयथा तनाविन्य चयम्-'निचिहए' निकिति : -निर्गता घृतादिरूपा विकृतियस्मात म निषितिर ?, 'पणीयरसपरिचाए' प्रगातग्मपरित्याग --प्रणीतरस प्रचुरत्वात् द्रावृतपिटुसदाहोऽपूपाटि , तस्य परित्याग २, 'आयरिलिए' आचामाम्लम्नितिरहितानामा नर्जिनचकाटीना रक्षा नानामचित्त उदक प्रश्रियैकामनस्थन सरुद्धोजनमाचामाम्ल नाम तप उच्यत । तथा चोक्तम्
‘से कि त रसपरिचाए " दयादि ।
(से कि त रसपरिचाए १) रमपरित्याग तप किसे कहते है । वह कितन प्रकार का है । इस प्रकार शिष्य प्रग्न करता है । उत्तर-(रसपरिचाए) रसपरित्याग , तप (अणेगविहे पण्णत्ते) अनेक प्रकारका कहा गया है । वह इस प्रकार से हे-(निधिइए) निर्विकृतिक-जिस आहार से घतातिक विकृति निर्गत हो चुका हो ऐसे आहारका ग्रहण करना सो निर्विकृतिक है । अथात्-गिय नहा लना (१) । (पणीयरसपरिचाए) प्रणीतरसपरित्याग अपूप अथात मालपुआ आदि सरस आहार का परित्याग करना (२)। (आयविलिए) आचामाम्ल-गियरहित ओटन, मुंजे हुए चन आदि रूक्ष अनका अचित्त पानी में डालकर एफस्थान पर बैठ एक बार हा खाना सो आनामाम्ल तप है ।
'से कि त रसपरिचाए ?' त्याहि
(से कि त रसपरिचाए) मही २मपरित्या त५ अनेट छ-ते उटमा ५४ारना छ ? २मा प्रहारे शिष्य प्रश्न उरे छ उत्तर (रसपरिचाए) २स परित्याग त५ (आणेगविहे पण्णत्ते) मन ना ४उपाय a २ प्रकारे 3-(निव्यिइए) निविति-2 माहारमाथी घी वगेरेना विति नाजी 15 डाय એ આહાર લેવો તે નિર્વિકતિ છે અર્થાત વિગય (ઘી-દૂધ વગેરે) अनडि (१) (पणीयरसपरिचाए) प्रणीतरसपरित्या-मयू५ अर्थात् माता
शाहि स२स मानी परित्याग व (२) (आयविलि) मायामासવિગયરહિત ભાત, ભુજેલ ચણા આદિ અન્ન અચિત પાણીમાં નાખી